________________ है। मोक्ष सम्पति युक्त यह मनुष्यों के लिए प्रशंसनीय है एवं जन्मवान् जीवों के लिए पूजनीय है। एकोऽनेक स्त्रैर्गुणैरेन्द्रवन्यं / ॐकाराद्यैर्मत्रयंत्रै निवेद्यः // तस्यौनत्यं ज्ञानशक्त्याऽप्यनन्तो / मुक्ताकाराद् बिन्दुरूपी शिवात्मा // 20 // अन्वय-ऐन्द्रवन्धं एकः / त्रै गुणैः अनेकः ॐकाराद्यैः मंत्र यंत्रे निवेद्यः। ज्ञानशक्त्या औन्नत्यं तस्य स अनन्तः। मुक्ताकाराद् विन्दुरूपी शिवात्मा // 20 // अर्थ-इन्द्रों से वन्दनीय वह एक है। त्रिगुण दर्शन ज्ञान चारित्र से वह शुद्धात्मा अनेक भी है। ॐकारादि मंत्रों से वह निवेदनीय है ज्ञान की शक्ति से वह अत्यन्त उन्नत है, सर्वोपरि है। निराकार होने के कारण वह बिन्दु रुपी शिवात्मा हैं। ॐकारात् कृतिभिः स्मृतोऽव्यय महानुत्पन्न कर्ताङ्गिनाम् / अंगेयोऽर्हत एव सिद्धभवने मुक्ताकृतिः स्वात्मनः // साक्षाद्वैनयिक पदं नम इति....माच्यमकृत्या दिशन् / अ: सिद्धार्थ विसर्जनीयवपुषो यस्याश्रयः संश्रिये // 21 // अन्वय-ॐकारात् कृतिमिः स्मृतः अंगीनां अव्यय महानुत्पन्नकर्ता अर्हत एव अंगे सिद्धेभवने स्वात्मनः मुक्ताकृतिः साक्षात् वैनयिक पदं नमः इति अः प्राच्यप्रकृत्या दिशन् यस्याश्रयः सिद्धार्थ बिसर्जनीय वपुषः आश्रयं स श्रिये // 21 // अर्थ-जो ॐकार द्वारा ज्ञानियों से स्मृत है एवं जीवों का अव्यय एवं महोदय कर्ता है। अर्हत् के अंगभूत सिद्ध भवन में जो अपनी आत्मा की आकृति को (निराकार रूप में) छोड़कर ठहरा हुआ है। अर्थात् अहंद्गीता 294 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org