________________ व्यञ्जन (उपाधि) रहित (क वर्ग च वर्ग आदि रहित) 24 प्रकार हमारी रक्षा करे। अर्हन् आयजिनः स इक्षुकुलभूः ईशस्तथोरुक्रमः / उच्चैर्नित्यमहोपयोग उदयी स्थायी सदोर्ध्व शिवे // नाम्ना श्रीऋषभश्च ऋगणतनुः श्रीमान् नृभिः सेवितः / नृगीतोऽत्र स एक एव भगवान् ऐश्वर्यदाताङ्गिनाम् // 18 // अन्वय-अर्हन् आद्य जिनः स इक्षुकुल भूः ईशः तथा उरुक्रमः नित्य उच्चै महोपयोगः उदयी स्थायी शिवे सदा उर्व नाम्ना श्री ऋषभः ऋगणतनुःच श्रीमान् नृभिः सेवितः स अत्र नगीतो अङ्गिनाम् एक एव ऐश्वर्यदाता भगवान् // 18 // अर्थ-ऋषभदेव में सारे स्वरों का समाहार कर रहे हैं - अर्हन् आदि जिन हैं (अ) इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न हुए हैं (इ) ईश्वर हैं (ई) महान उपयोगशाली है उदयी है (उ) शाश्वत शिवपद की ओर सदा ऊँचे बढ़ने वाले हैं (ऊ) उनका नाम ऋषभ है (ऋ) अज शरीर वाले हैं श्रीमान् हैं मनुष्यलोक से सेवित हैं। मानव लोक से स्तुत्य ये भगवान् इस लोक में जीवों के एक मात्र ऐश्वर्यदाता हैं। अर्हन आत्मा केवलः स्यात्समात्रो / ऽपीच्छामुक्तेरीश एवोपयोगी। उद्धर्वस्थायी सत्रिलोक्यापरर्द्धिः / नृणां गेयः पूजनीयः सजात्याम् // 19 // अन्वय-समात्रः अर्हन केवलः आत्मा। उपयोगीस इच्छामुक्ते. ईश। सत्रैलोक्योलस्थायी अपरद्धिः नृणां गेयः सजात्यां पूजनीयः // 19 // अर्थ-मात्रा (उपाधि) से युक्त अर्हन् शुद्ध आस्मा है। उपयोगवान् वह इच्छा की मुक्ति से ईश ही है। वह तीनों लोकों से उर्ध्व स्थित द्वात्रिंशत्तमोऽध्यायः 293 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org