________________ अन्वय-अकारस्वरे अदःप्रकारचरितात् अर्हन्तः स्युः श्रुतधरैः आकारयोगे स्मृताः केवलशालिनः ध्येयाः॥ एकोऽर्हन् परापरतया अकारतः अनेक अपि तत् इमे समे सर्वज्ञा अस्मदृशः नैर्मल्यं विदधतां // 16 // अर्थ-अकार स्वर में इस प्रकार 24 अर्हत् भगवान चरितार्थ हुए हैं। श्रुतधरों ने आकार योग से उनका स्मरण किया है ऐसे केवल ज्ञान से सुशोभित ज्ञानी अरिहन्तों का ध्यान करना चाहिए। ___ एक ही अर्हत् आकार से परापरतया अनेक हो जाते हैं। ये सभी सर्वज्ञ हैं। ये हमारे जैसों के लिए निर्मलता का विधान करें। कस्येको भगवाँश्चकार विदितोऽसौधेऽपि युग्मं बने / तद्वा ये समतामवाप्य च गुणा लोकावकाशे दिशः // अर्थाश्चेन्द्रियजा अवर्णनियता जाताश्चतुर्विंशति / सर्वे तेऽकचसाधनावशमपाः पान्त्वर्हता वाचकाः // 17 // अन्वय-कस्य एकः भगवान असौधेऽपि वने युग्मं विदितः चकारः तदवा ये गुणाः लोकावकाशे दिशः च समतां अवाप्य (जाता चतुर्विंशति) अर्थाः च इन्द्रियजा अवर्ण नियता चतुर्बिशति जाता: सर्वे ते अकचसाधना वशमपाः अहंतां वाचकाः पान्तु // 17 // अर्थ-किस केवली भगवान ने साधन रहित होने पर भी जंगल में युगलिक जनों को ज्ञानवान् बनाया ( ऋषभदेव भगवान् ने ) अथवा चौदह गुण स्थानक एवं लोकाकाश को दश दिशाएं मिलकर 24 संख्या सिद्ध होती है वैसे ही अकार के भी 18 विवृत एवं 6 संवृत भेद मिलकर 24 भेद होते हैं। अथवा अवर्ण से नियत अकारादि 14 स्वर एवं य र ल व श ष स ह क्षं लं आदि 10 मिलाकर 24 की संख्या सिद्ध होती है। वैसे ही इन्द्रिय जन्य अर्थ भी 24 हैं जो अवर्ण से नियत है अर्थात् आत्मा से नियंत्रित है। 24 तीर्थकरों का वाचक अकार का 292 अहंद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org