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________________ अयोध्यायामनंतोऽर्हन् अंकुशार्योऽर्थ सिद्धिदः / / धर्मोऽतिशयवान् अर्थः सिद्धोऽष्टशतसाधुभिः // 10 // अन्वय-अनन्तः अर्हन् अयोध्यायां अंकुशायः अर्थसिद्धिदः / अष्टशत साधुभिः सिद्धः अतिशयवान् धर्मः अयः / / 10 / / / अर्थ-अयोध्या में अवतरित अनन्तनाथ भगवान् अंकुशानाम की यक्षिणी से पूजित हैं। सकलार्थ की सिद्धि करने वाले अतिशय युक्त धर्मनाथ की नित्य प्रार्थना करनी चाहिए। वे एक सौ आठ साधुओं के साथ सिद्ध गति को प्राप्त हुए हैं / अचिरादचिरामनुः शान्तये शान्तिरेनसाम् / अबलाय॑कुन्थुररोऽवतीर्णश्चापराजितात् // 11 // अन्वय-अचिरासू नुः शान्तिः एनसां शान्तये अचिरात् / अवलार्यः कुन्थुः अरः च अपराजितात् अवतीर्णः।। 11 // अर्थ-अचिराजी के पुत्र शान्तिनाथ भगवान् शीघ्र पापों की शान्ति के लिए हो। कुंथुनाथ भगवान अबला देवी द्वारा पूजित हैं। अरनाथ भगवान अपराजित देवलोक से अवतीर्ण हुए हैं। अवतीर्णोऽश्विनीचंद्रे-ऽष्टमे केवलवान् यतिः। मल्लिनाथः सुव्रतोऽर्हन् अवतीर्णोऽपराजितात् // 12 // अन्वय-अश्विनी चन्द्रे अवतीर्णः अष्टमे (चन्द्रे) केवलवान् यतिः मल्लिनाथः सुव्रतोऽर्हन् अवतीर्णः अपराजितात् // 12 // अर्थ-अश्विनी नक्षत्र के आठवे चन्द्रमा में अवतरित और उसीमें केवलज्ञान प्राप्त करने वाले श्री मल्लिनाथ भगवान हैं। मुनिसुव्रतस्वामी अपराजित नाम के देवलोक से अवतीर्ण हुए हैं।। संजातो नमिरश्विन्यां नेमिश्चाष्टम केवली / अम्बिकार्यो रिष्टयेष्टा-वतारी चापराजितात् // 13 // 290 अर्हद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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