________________ अर्थ-कमल लच्छन एवं लाल वर्ण वाले पद्मप्रभु अच्युता देवी द्वारा पूजित हैं। सुपार्श्वनाथ अपने अंग की कांति एवं माहात्म्य से दोनों प्रकार से कामदेव का वारण करने वाले हैं। अमृतद्युतिलक्ष्मानु-राधायामवतीर्णवान् / चन्द्रप्रभपुष्पदन्तोऽजिताय॑स्त्वानतागतः // 7 // अन्वय-अमृतयुति लक्ष्मा अनुराधायां अवतीर्णवान् चन्द्रप्रभः अजिताय॑ः पुष्पदन्तः आनतागतः // 7 // अर्थ-चन्द्रप्रभुस्वामी चन्द्र लाच्छन वाले हैं एवं अनुराधा नक्षत्र में अवतरित हुए हैं। सुविधिनाथ अजितादेवी द्वारा अर्चित है एवं आनत नाम के देवलोक से इस धरती पर आए हुए हैं। अशोकार्योऽशोकतरौ स्थाताईन् शीतलः प्रभुः / अनगाराधिपः श्रेयान् अच्युतादवतीर्णवान् // 8 // अन्वय-अशोकतरौ स्थाता शीतल प्रभुः अर्हन् अशोकार्य अनगाराधिपः श्रेयान् अच्युतात् अवतीर्णवान् // 8 // ____ अर्थ-अशोक वृक्ष के नीचे स्थित शीतल प्रभु अशोक नामक यक्ष से पूजित हैं। साधुओं में श्रेष्ठ श्रेयांसनाथ अच्युत नामक देवलोक से अवतरित हुए हैं। अष्टकर्मविजिदष्ट-वस्तुभिः पूजितोऽष्टधा / वासुपूज्योऽमरेशाच्या विमलोऽनर्थवारणः // 9 // अन्वय-अष्टकर्म विजित् अष्ट वस्तुभिः अष्टधा पूजितः वासुपूज्यः अमरेशाय॑ः विमलः अनर्थवारणः // 9 // अर्थ-अष्टकर्मों को जीतने आले जलादि आठ वस्तुओं से अष्ट प्रकारी पूजा से पूजित वासुपूज्य स्वामी हैं। इन्द्र द्वारा पूजित विमलनाथ भगवान अनर्थ का निवारण करने वाले हैं। द्वात्रिंशत्तमोऽध्यायः अ. गी.-१९ 289 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org