________________ अजितोऽहनयोध्याया-मवतारादधीश्वरः / सेव्यो देव्याप्यजितया यस्य लक्ष्माप्यनेकपः // 3 // अन्वय-अजितोऽर्हन् अयोध्यायां अवतारात् अधीश्वरः। देव्या अजितया अपि सेव्यः यस्य लक्ष्मा अपि अनेकपः // 3 // अर्थ-भगवान् अजितनाथ अयोध्या में अवतरित हुए वे अयोध्या के म्वामी थे अजितादेवी द्वारा वे पूजित हैं एवं उनका लाञ्छन अनेकप अर्थात् हाथी है। अश्वलक्ष्मा शंभयोऽर्हन् भासुरोऽतिशयैनः / अयोध्यायामभूदर्हन् अभिनन्दननामभृत् // 4 // अन्वय-शम्भवः अर्हन् अश्वलक्ष्मा अतिशयैः धनः भासुरः। अर्हन् अयोध्यायां अभूत् अभिनन्दन नामभृत् / / 4 // अर्थ-भगवान सम्भवनाथ अश्वलाञ्छान वाले हैं बहुत अतिशयो से सुप्रदीप्त है। अभिनंदन नाम वाले अर्हत् अयोध्या में हुए हैं। अलंकृतावतारेण अयोध्यानंततेजसा / येन श्री सुमतिया-त्सोऽजरामरसम्पदम् // 5 // अन्वय-येन अनन्ततेजसा अवतारेण अयोध्या अलंकृता स श्री सुमति अजरामरसम्पदं देयात् // 5 // अर्थ-जिन्होंने अपने अनन्त तेज से अवतरित होकर अयोध्या नगरी को विभूषित किया वे श्री सुमतिनाथ अजरामरसम्पद यानि मोक्ष को प्रदान करें। पद्मप्रभोऽच्युताभ्यो -ऽम्भोजलक्ष्मारुणयुतिः / द्वेधाप्यङ्गप्रभावेन सुपार्थोऽनङ्गवारणः // 6 // अन्वय-अम्भोजलक्ष्मा अरुणयुतिः पद्मप्रभः अच्युताभ्यर्च्यः / सुपार्श्व: अपि अङ्गप्रभावेन द्वेधा-अनंगवारणः // 6 // 288 अर्हद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org