________________ द्वात्रिंशत्तमोऽध्यायः अकार में 24 तीर्थंकरो की सिद्धि [ श्री गौतम स्वामी ने पूछा है हे भगवान् अ में एकरूप से सभी ऋषभादि अरिहंतो को किस प्रकार वर्णित किया जा सकता है एवम् सभी स्वरों में एक अर्हत् किन गुणों द्वारा प्रतिपादित किये जा सकते है ? श्री भगवान् ने उत्तर दिया कि ऋषभादि सभी तीर्थङ्करों के जन्मस्थान, देवी, माता एवम् अन्य स्वरूपों में अकार की प्रधानता है। इस प्रकार अकार स्वर में 24 अर्हत् भगवान चरितार्थ होते हैं। श्रुतधरों ने आकार योग से उनका स्मरण किया है। एक ही अर्हत् आकार से परापरतया अनेक हो जाते हैं जैसे एक ही अकार के संवृत विवृतादि 24 भेद होते हैं वे अर्हत् एक हैं पर दर्शन ज्ञान चारित्र से वे अनेक भी हैं। अवर्ण भी 24 प्रकार का है जो 24 तीर्थंकरों का वाचक है। अहंदगीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org