________________ अर्थ-संसार में जो पदार्थ अनादि अनन्त हैं वे भी. अविनाशी होने के कारण अकार स्वरूप अर्हत् में समाए हुए हैं। ज्ञान चक्षुओं से अनुपम और अजर अमर होने के कारण अकार में निश्चय रूप से अर्हत् भगवान समाविष्ट हैं। अर्हन् अकारो भगवान् भवान्या स्वमौलिमालाललितरपूजि / तेनाधिपीठेऽहंत एव बिम्ब . देवी विधेया बुधसूत्रधारैः // 8 // अन्वय-अकारो अर्हन् भगवान् भवान्या स्वमौलिमालाललितै: अपूजि। तेन अर्हतः अछिपीठे एव बिम्बदेवी बुधसूत्रधारैः विधेया / / 8 // अर्थ-अकार अर्हत् स्वरूप हैं एवं भगवती भवानी ने अपनी सुन्दर मस्तक मालाओं के द्वारा अकार स्वरूप अर्हत् भगवान् की पूजा की है। अतः अर्हत् भगवान के बिम्ब के चरण कमल के नीचे ही ज्ञानी सूत्रधार देवी के बिम्ब की रचना करते हैं / अकारवाच्यस्तत एव न स्यात् कृष्णो हरो वाप्यपरोत्र देवः / कृष्णस्य लक्ष्म्याःकिल सव्यभागे अर्धाङ्गे निवेशेन भवस्य गौर्याः // 9 // अन्वय-कृष्णस्य सव्यभागे लक्ष्म्याः किल निवेशेन तथा च भवस्य अर्धाङ्गे गौर्याः निवेशेन ततः हरो कृष्णो वा अपरो देव अत्र अकारवाच्य एव न स्यात् // 9 // अर्थ-यह अ कृष्ण या शिववाचक क्यों नहीं है उसका विवेचन करते हैं। कृष्ण के वामांग में लक्ष्मी का निवास होने से तथा शिव के 280 अर्हद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org