________________ अन्वय-भुवि अर्का द्वादशलोकसिद्धाः ते होराश्रयात् द्विगुणाः भवन्ति। तथैव अर्हन् चतुर्विंशतिधा एषः अकारः अपि तवाचकः बोध्यः // 5 // अर्थ-संसार में द्वादश सूर्य लोक प्रसिद्ध हैं राशियों के उदय के समय अर्थात् घंटो के आश्रय से ये 24 प्रकार के हैं यह अकार भी उन्हीं अर्हत् भगवान के 24 रूपों का संकेत करता है क्योंकि अकार के 18 विवृत्त रूप एवं 6 संवृत्त प्रकार माने जाते हैं। स्युादशाकारभिदोऽत्र दीर्घ ह्रस्वप्रपाठात् किल मातृकायाम् / प्लुतस्य शास्त्रे बहुशोऽप्रयोगात् सव्यंजनोन्यश्च तथास्त्यकारः // 6 // अन्वय-अत्र मातृकायां किल दीर्घ ह्रस्व प्रपाठात् अकारः द्वादशाकारभिदः स्युः शास्त्रे प्लुतस्य बहुशः अप्रयोगात् सव्यञ्जनः अन्यश्च तथा अस्ति अकारः // 6 // अर्थ-मातृका में दीर्घ एवं ह्रस्व के भेद से अकार के 12 प्रकार होते हैं। प्लुत का शास्त्रों में अधिकतर प्रयोग नहीं है अतः वह व्यञ्जन के साथ ही रहता है और बाकी अकार की तरह ही होता है। अजाऽच्युताद्या अपि ये पदार्थाः स्युस्तेप्यकारेऽर्हति चाक्षरत्वात् / अनुत्तरत्वादपि बोधम्भि रहन अकारे ह्यजरामरत्वात् // 7 // अन्वय-अजाऽच्युताद्या अपि ये पदार्थाः (सन्ति) ते अपि च अक्षरत्वात् अर्हति अकारे स्युः बोधद्दग्मिः अनुत्तरत्वादपि अजरामरत्वाद् अकारे अर्हन् हि // 7 // एकत्रिंशत्तमोऽध्यायः . 279 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org