________________ अन्वय-श्री भगवानुवाच अर्हन् अर्कः सिद्धरूपः अर्थः एषः स तु अह्नः मुखे अब्जैः अध्य मूर्तिः अWः तत्संज्ञायां अकारे अष्टवा हि तेन एव अर्हन्नीश्वरोऽपि अष्टमूर्तिः / / 3 // अर्थ-श्री भगवान ने कहा हे गौतम अर्हन् परमात्मा सूर्य स्वरूपी सिद्ध हैं। प्रभातकाल में कमलों के द्वारा उन पूजनीय मूर्ति की अर्चना होनी चाहिए। उनके नाम रूप अकार में अष्टवर्ग है (क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग, अन्तस्थ, उष्म, विसर्ग) इसीलिए वे अर्हन् अष्टमूर्ति ईश्वर भी हैं। श्री आदिदेवो ह्यरुणोऽर्यमा वा ह्यहर्पति निर्मलवृत्तकान्त्या। अर्हन सदार्कस्तदकारनाम्ना प्रकाशकः शाश्वत एष विश्वे / / 4 / / अन्वय-श्री आदिदेवो हि निर्मल वृत्त कान्त्या अरुणो अर्यमा अहर्पति वा। तत् अकारनाम्ना अर्हन् सदा अर्कः एषः विश्व शाश्वतः प्रकाशकः // 4 // अर्थ-श्री आदिदेव अपने निर्मल चारित्र के तेज से अरुण (प्रभातकालीन सूर्य ) अर्यमा अथवा दिनपति सूर्य हैं। अकार नामी वे अर्हत् नित्य सूर्य की तरह सदैव जगत के शाश्वत प्रकाशक हैं। अर्का भुवि द्वादश लोकसिद्धा . होराश्रयात्ते द्विगुणा भवन्ति / अहं चतुर्विंशतिधा तथैवाऽकारोऽपि तद्वाचक एष बोध्यः // 5 // अहद्गीता ર૭૮ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org