________________ एकत्रिंशत्तमोऽध्यायः अर्हत् स्वरूप [श्री गौतम स्वामी ने पूछा है कि अकार की तरह अर्हद् भगवान में अनन्त शक्तियाँ समाई हुई है उन अर्हतों में स्थित कुछ भावों का स्वरूप मुझे बताइए। श्री भगवान ने उत्तर दिया अर्हत् परमात्मा सूर्य स्वरूपी सिद्ध हैं उनके नाम रूप अकार अष्ट वर्ग हैं (क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग, अन्तस्थ उष्म विसर्ग। इसलिए वे अर्हत् अष्टमूर्ति ईश्वर भी हैं। द्वादश सूर्य राशियों के उदय के समय 24 हो जाते हैं वैसे ही अर्हत् भी 24 प्रकार के हैं। अकार से कृष्ण या शिव का बोध नहीं होगा क्योंकि इन स्वरूपों के वामांग में लक्ष्मी अथवा पार्वती प्रतिष्ठित है परन्तु अर्हत् भगवान के तो चरण कमलों के नीचे देवी की स्थिति है। अर्हत् परमात्मा सहनशीलता में साक्षात् पृथ्वी है। चित्त की निर्मलता में समुद्र का जल है, अप्रतिहत गति के कारण वायुरूप है एवम् उग्र तपस्या के तेज से वे अग्नि स्वरूप हैं और विरालम्ब होने से / आकाश है। अर्थात् पंच महाभूत सदृश स्वरूप है।] * * * 276 अहंद्गीता Jain Education International * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org