________________ अन्वय-स्वरात्मनि भासमाने एष सिद्धार्थात् भवति मकारेण महावीरो वाच्यः सिद्धार्थभूः इति // 17 / / अर्थ-स्वर रूप में प्रकाशित अनुस्वार रूप म (अं) अर्थ से होता है। महावीर भी सिद्धार्थ के पुत्र है अतः मकार से महावीर भी यह वाच्यार्थ सिद्ध होता है। शिवरूपमनुस्वारे-ऽनाकाराद्यस्तदात्मनः / भूः स्थानं नेमिनाथोऽर्हन् ख्यातस्तेन शिवात्मभूः // 18 // अन्वय-यः आत्मनः अनाकारात् अनुस्वारे शिवरूपं भूः स्थानं तेन शिवात्मभूः नेमिनाथः अर्हन् ख्यातः // 18 // अर्थ-जो म आत्मा की निराकारता के कारण शिवस्वरूप है इसी से शिवादेवी से उत्पन्न अर्हन् नेमिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए। नमः प्रसिद्धं यद्विन्दुरूपं तथा विसर्जनम् / द्वेधा प्रकृत्यास्तदपि अकारादि स्वराश्रितम् / / 19 // अन्वय-यत् नमः प्रसिद्धं (तत्) बिन्दुरूपं तथा विसर्जनं द्वैधा प्रकृत्याः तदपि अकारादि स्वराश्रितम् // 19 / / अर्थ-जो नमः रूप से प्रसिद्ध है वह बिन्दुरूप ही है न एवं म दोनों ही अनुस्वार हैं नम: के आगे विसर्ग है। ये विसर्ग तथा अनुस्वार प्रकृति से दो प्रकार के हैं पर अकारादि स्वरों पर ही आश्रित हैं इनसे परे इन विसर्ग तथा अनुस्वार की स्थिति नहीं है। सोऽहं हंस सदा जापो-ऽनाहतो योगिनां मतः / तत्राप्यकारवाच्योऽर्हन् नियमाद् योगसाधने // 20 // अन्वय-योगसाधने नियमाद् अनाहतो सोऽहं हंस जापः सदा योगिनां मतः तत्रापि अर्हन् अकारवाच्यः / / 20 / / 274 अहंद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org