________________ अ इत्यर्हन आदिदेवो महावीरो मतिस्मृतः। अं नमः कथनादर्हच्चतुर्विंशतिमानमेत् // 14 // अन्वय-अ इति आदिदेवः अर्हन् मति महावीरः स्मृतः अं नमः कथनात् अर्हत् चतुर्विंशतिं आनमेत् // 14 // अर्थ-अ से आदिदेव अर्हत् ऋषभदेव का ग्रहण करना चाहिए म से महावीर। इस प्रकार अं नमः कहने से 24 तीर्थंकरों को नमस्कार करना चाहिए। मश्च शंभुरनेकार्थे-ऽपवर्गान्तप्रतिष्ठितः / महाब्रह्मपदे मूर्ध-न्यारोहे स्वरसंगतः // 15 // अन्वय-स्वरसंगतः महाब्रह्मषदे मूर्धनि आरोहे अनेकार्थे मः अपवर्गान्तप्रतिष्ठितः शम्भुः // 15 // अर्थ-स्वर से युक्त महाब्रह्मपद स्वरूप अं स्वर के मस्तक पर सवार अनेक अर्थ से म अर्थात् अं सिद्धशिला पर प्रतिष्ठित सिद्धभगवान के समान है। सिद्धस्यार्थो बिन्दुरूप-मनाकारात्तदीयभूः। स्थानं सिद्धार्थभूस्तेन महावीरो जिनः स्मृतः // 16 // अन्वय-अनाकारात् तदीयभूः बिन्दुरूपं सिद्धस्य अर्थः / सिद्धार्थभूः स्थानं तेन महावीरो जिनः स्मृतः // 16 // अर्थ-अनाकार होने के कारण उसी से उत्पन्न बिन्दु सिद्ध का ही वाचक है। अर्थात् म का बिन्दु रूप सिद्ध का ही अर्थ है। सिद्धार्थ से उत्पन्न जिनेश्वर भगवान को महावीर कहते हैं। सिद्धार्थाद्वा भवत्येष भासमाने स्वरात्मनि / मकारेण महावीरो वाच्यः सिद्धार्थभूरिति // 17 // त्रिंशत्तमोऽध्यायः अ. गी.-१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org