________________ अर्थ-जिस प्रकार नाभिराज से उत्पन्न आदि अरिहन्त ऋषभदेव से सारी वर्ण व्यवस्था प्रारम्भ हुई है वैसे ही अकार से भी मातृका में सम्पूर्ण वर्णों की व्यवस्था स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। ऋषभदेव की तरह यह अकार साक्षात् विश्वम्भर भी है क्यों कि इससे अखिल विश्व को व्याप्त करने वाली सम्पूर्ण वर्णमातृका समाई हुई है। तेनाकारस्य मुख्यत्वं यवनाध्ययनेऽप्यहो / ऋजुः प्रकृतिधवलः स कृष्णो नैव युज्यते // 11 // अन्वय-अहो यवनाध्ययनेऽपि तेन अकारस्य मुख्यत्वं स ऋजुः प्रकृतिधवलः कृष्ण नैव युज्यते // 11 // अर्थ-यवनों के शास्त्र में भी अकार की महत्ता है यह अकार सरल है एवं प्रकृति से धवल है इसे कृष्ण कहना समीचीन नहीं है। आकारकेवलात्मास्य रूपं स्त्रीलिंगसंगजम् / शाब्दिका अपि न प्राहुः कृष्णमायाऽस्य तत्कुतः // 12 // . अन्वय-आकार केवलात्मा अस्य स्त्रीलिंग संगजम् रूपं शाब्दिका अपि न प्राहुः तत्कुतः अस्य कृष्णमाया // 12 // अर्थ-आकार इस अकार की शुद्ध बुद्ध आत्मा है। इसका स्त्रीलिंग संगत रूप तो वैयाकरण भी नहीं कहते हैं तो इसकी कृष्णमाया (लक्ष्मी) होने का तो सवाल ही क्या है ? ज्ञानात्मना जगद्व्याप्ति-विष्णौ वाहति चार्हति / न सा मायामये मन्यमाने देवेऽस्ति तत्त्वतः / / 13 / / अन्वय-विष्णौ वा अर्हति च ज्ञानात्मना जगद्व्याप्तिः अर्हति न सा तत्त्वतः मायामये मन्यमाने देवेऽस्ति / / 13 // अर्थ-ज्ञानमयता के कारण विष्णु अथवा अर्हत् भगवान की जगत् में व्याप्ति है यह व्याप्ति वास्तव में मायामय (स्त्रीसहित) माने जाने वाले देव में नहीं हो सकती है। 272 अर्हद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org