________________ उच्चारणेऽपि शब्देन यदाकारो निराकृतिः। लेखने साकृति द्वैधा मुक्तो वा मोचकोऽप्ययम् // 7 // अन्वय-यत् उच्चारेण अपि शब्देन अकारः निराकृतिः। लेखने साकृतिः। द्वेधा मुक्तः वा मोचकः अपि अयम् // 7 // अर्थ-उच्चारण में भी शब्दोच्चार में अकार निराकार है। लिखने पर वह आकृति युक्त है इस प्रकार वह मुक्त निराकार भी है और मोचक (साकार) भी है। आकारस्तत एवास्य स्वरूपाद्दीर्घतां दधौ। अर्हत्पार्श्वस्थितेर्वेत्ता तेनाकारं निषेवते // 8 // अन्वय-ततः आकारः अस्य एव स्वरूपात् दीर्घतां दधौ। तेन अर्हत् पार्श्वस्थितेः वेत्ता ते आकारं निषेवते // 8 // अर्थ-इसीलिए आकार (बिम्ब) इन्हीं के स्वरूपमय होने के कारण महत्त्वपूर्ण माना जाता है। अर्हत् भगवान की सन्निधि के कारण ज्ञानी उनके आकार (बिम्ब) की भी पूजा करते हैं / एकोऽप्यकारस्तादात्म्या-च्चतुर्विंशतिधा भवेत् / आकारादिभिदा तद्वदर्हन्नेकोऽपि वस्तुतः // 9 // अन्वय-एकः अपि अकारः तादात्म्यात् आकारादिभिदा चतुर्विशतिधा भवेत् तद्वत् अर्हन् वस्तुतः एकः अपि // 9 // अर्थ-एक ही अकार तत् तत् आकारों से 24 प्रकार का होता हैं वैसे ही 24 तीर्थंकरों में अर्हत् वस्तुतः एक ही हैं। वर्णव्यवस्था सकलाप्या-द्यान्नाभिभुवोऽर्हतः। तथाकारादसौ स्पष्टा साक्षाद्विश्वंभरोऽप्ययम् // 10 // अन्वय-नाभिभुवः आद्यात् अर्हतः सकला अपि वर्णव्यवस्था स्पष्टाः तथा अकारात् (वर्णव्यवस्था स्पष्टा) साक्षात् विश्वम्भरः अपि अयम् // 10 // त्रिंशत्तमोऽध्यायः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org