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________________ है एवं उनको न तो जरामरण का चक्कर है और न भवभ्रमण है अतः अक्षरों में प्रथम अक्षर यह अकार अर्हन् वाचक है। नराः प्राणभृतां मुख्याः प्रागुक्तास्तेषु शुद्धवाक् / वाक्शुद्धिर्मातृकाभ्यासा-दकारस्तन्मुखे ततः // 4 // अन्वय-प्राणभृतां नराः मुख्याः तेषु शुद्धवाक् प्रागुक्ता वाक्शुद्धिः मातृकाभ्यासात् ततः अकारः तन्मुखे // 4 // अर्थ-जीवधारियों में नर मुख्य है और नरो में शुद्ध बोलने वाले मुख्य माने गए हैं। वर्णमातृका में (वाक् शुद्धि) अभ्यास में प्रथमाक्षर अकार है। भवेत्सिद्धि लोकस्य लोकविष्णोः सनामिगः / नाभिजत्वादकारोऽर्हन् ततः संवृतयत्नवान् // 5 // अन्वय-स (परमात्मा) नाभिगः। ततः नाभिजत्वाद् अकार ततः संवृतयत्नवान् अर्हन् / ( तस्य ) लोकविष्णोः ( उपासनया ) नृलोकस्य सिद्धिः भवेद् // 5 // अर्थ-वह अकार नाभि से उत्पन्न है। सर्वव्यापी ऋषभदेव भी नाभिराजा से उत्पन्न हुए हैं अत: अकार भी अर्हत्रूप ही है। उनकी अर्थात् अकार और ऋषभदेव की उपासना करने से संसार में चारित्रवान उद्यमी पुरुषको संवृत्त अकार के प्रयोग से सिद्धि प्राप्त होती है। तथाष्टादशधाकारो विवाराच्छाब्दिके नये / / षोढा संवृतयत्नेन चतुर्विंशतिधा ततः // 6 // अन्वय-तथा शाब्दिके नये विवारात् अष्टादशधा अकारः षोढा संवृत्तयत्नेन ततः चतुर्विशतिधा // 6 // अर्थ-व्याकरण शास्त्र में विवृत्त यत्न युक्त अकार के अट्ठारह प्रकार होते हैं। संवृतयत्नवान् अकार 6 प्रकार का होता है इस प्रकार अकार के 24 प्रकार हुए। इसी प्रकार अर्हतों के 24 प्रकार होते हैं। अद्गिीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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