________________ व्यञ्जनानि त्रयस्त्रिंशत् स्वराश्चैव चतुर्दश / अनुस्वारविसौं च जिह्वामूलीय एव च // 18 // गजकुम्भाकृतिर्वर्ण: प्लुताश्च परिकीर्तिताः / एवं वर्णा द्विपञ्चाशत् षष्टि; मातृकाक्रमे // 19 // अन्वय-व्यञ्जनानि त्रयस्त्रिंशत् स्वराश्चैव चतुर्दश अनुस्वारविसर्गौ च जिह्वामूलीय एव च गजकुम्भाकृतिर्वणः प्लुताश्च परिकीर्तिताः एवं मातृकाक्रमे वर्णाः द्विपश्चाशत् षष्टिः वा // 18 // 19 // अर्थ-३३ व्यञ्जन 14 स्वर अनुस्वार विसर्ग जिह्नामूलीय उपध्मानीय तथा प्लुत आदि मिलाकर मातृका क्रम में वर्ण 52 या 60 वर्ण माने गए हैं। षष्ट्यक्षराणां च पलं तैदंडो युनिशं च तैः। तत्पष्टया च ऋतुस्तेषां द्विषष्टयावर्षविंशिका // 20 // अन्वय-पष्टयक्षराणां च पलं तैः दण्डः तैः च युनिशं तत्षष्टया च ऋतुः तेषां द्विषष्टया वर्षविंशिका // 20 // अर्थ-इन साठ पर ही सारा लोक व कालचक्र आधारित है इन साठ अक्षरों से पल * 60 पलों से एक घड़ी 60 घड़ियों से रातदिन 60 रातदिन एक ऋतु और 120 ऋतुओं से 20 वर्ष का समय नियमित होता है। तासां त्रये वत्सराणा-मेकषष्टिः प्रकीर्तिता / मासषष्ट्या युगं यद्वा तद्वादशभिरप्यसौ // 21 // अन्वय-तासां त्रये वत्सराणां एक षष्टिः प्रकीर्तितः मासषष्टया यद्वा ते द्वादशभिः असौ युगम् // 21 / / अर्थ-उन तीन बीसी वर्षों से प्रभवविभव आदि साठ साठ वर्षों का एक समय माना जाता है। 60 महिनों का युग तथा 12 महिनों का एक समय वर्ष माना जाता है। ___ * साठ अक्षरों को बोलने में जितना समय लगता है उसे पल कहते हैं। // इति श्री अहंद्गीतायां कर्मकाण्डे एकोनत्रिंशत्तमोध्यायः // एकोनविंशत्तमोऽध्यायः 267 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org