________________ विलास है और सामने की बिन्दु उसमें रखा हुआ लड्डु है जो समृद्धि का सूचक है। परेऽप्याख्यान्ति शेषोऽयं नागराजः कृतोत्फणः। नीचैः कुण्डलितः शब्दानुशासनादिकारकः // 15 // अन्वय-अयं कृतोत्फणः शब्दानुशासनादिकारकः नागराजः शेषः नीचैः कुण्डलितः परे अपि आख्यान्ति // 15 / / अर्थ-दूसरे लोग ऐसा भी कहते हैं कि यह ॐ व्याकरण शास्त्र का उद्घोष करने वाला फन उठाए हुए नीचे कुण्डली मारे हुए शेषनाग हैं। बिन्दुरूपो मणिस्तस्य पुरतः सद्भिरिष्यते / लेखाश्चतस्रः ता देव्या वाचोऽवस्थानिरुपिकाः // 16 // अन्वय-तस्य पुरतः मणिः बिन्दुरूपः (इति) सद्भिः इष्यते। ता लेखाः चतस्नः वाचः देव्याः अवस्था निरूपिका // 16 // अर्थ-उस शेषनाग के ऊपर स्थित मणि बिन्दु रूप है ऐसा सन्त पुरुष कहते हैं। ऊस शेषनाग के फण की चार रेखाएँ वाग्देवी की परा पश्यन्ती मध्यमा तथा वैखरी चार अवस्थाओं की सूचक हैं। विवेचन-चार अर्धगोलाकार रेखाएँ के योजन से अँकी आकृत्ति होती है। आहुरन्येऽक्षराणां स्यात् षष्टेरङ्कोयमीदृशः। मातृकायां नियमिताः षष्टिवर्णा न तत्परे // 17 // अन्वय-अन्ये अयं आहुः अक्षराणां (वर्षाणां) षष्टेः अंक ईदृशः स्यात् मातृकायां षष्टि वर्णाः नियमिताः न तत्परे // 17 // अर्थ-मातृका में साठ अंक माने गए हैं उससे अधिक नहीं अतः कुछ लोग यह कहते हैं कि वर्ष भी साठ प्रकार के होते हैं। 266 अर्हद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org