________________ अर्थ-इसी वायु से ऊँचे उठाई गई बादल की जलधारा ऊपर से आती दिखाई देती है। जल से परिपूर्ण धरती चारों ओर से जलाकार दिखाई देती है वैसे ही मातृका भी निकट से बाहर आती है पर गुरुद्वारा सिखाई जाने के कारण बाहर से आती दिखाई देती है। तस्यामधोग्रंथिरूपा-नागलोकः स्फुटः स्मृतः / उच्चैरेफाकृतिः स्वर्ग-व्यापिकाग्निमुखाश्रयात् // 7 // अन्वय-तस्यां अधो ग्रंथिरूपात् नागलोकः स्फुटः स्मृतः उच्चै अग्निमुखाश्रयात् रेफाकृतिः स्वर्गव्यापिका // 7 // अर्थ-उस मातृका में नीचे की ग्रंथियाँ यानि उ ऊ की मात्राएँ (7.) नागलोकरूप में कही गई हैं और ऊँची रेफ की आकृति अग्निमुखमयी होने के कारण स्वर्ग व्यापक अर्थात् स्वर्गरूप में कही गई है। यह वर्णमातृका भूः भुवः स्वः का प्रतिनिधित्व करती है इस मातृका का सार उँ है जिसमें नीचे का भाग भू बीच का भुवः और ऊपर का स्वर्ग का रूप है। शून्याकारं नमस्तस्मा-त्स्वर्गाकाशप्रतिष्ठया। ततोनिभूतरेखैका साक्षात्तस्योर्ध्ववृत्तितः // 8 // द्वितीयाकारवाच्यं स्यान्मनोरेखोर्ध्वगामिनः / मातृकायां ततो भूतपञ्चकं सात्मकं स्मृतम् // 9 // अन्वय-तस्मात् स्वर्गाकाशप्रतिष्ठया शून्याकारं नभः ततः अग्निभूतरेखा एका साक्षात् तस्य ऊर्ध्ववृत्तितः द्वितीया ऊर्ध्वगामिनः मनोरेखा अकारवाच्यं स्यात् ततः मातृकायां सात्मकं भूतपश्चर्क स्मृतम् / / 8 // 9 // अर्थ-उस से (ॐ से) स्वर्ग और आकाश की प्रतिष्ठा के कारण उस पर का बिन्दु शून्याकार रूप आकाश है। उस नाभि से उठी अमि एकोनत्रिंशत्तमोऽध्यायः 263 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org