________________ अर्थ-श्री भगवान ने कहा जो मातृका पहले नाभि में अव्यक्त थी वही बाद में लिखने पर व्यक्त हो जाती है जैसे ग्रंथकार पहले मानस में अव्यक्त रूप से ग्रंथ का संयोजन करता है और बाद में उसका प्रकटन करता है। यह सत्य है कि जो वस्तु अव्यक्त होती है वही बाद में व्यक्त हो जाती है पंच सूक्ष्म तन्मात्र से ही पंच महाभूत उत्पन्न होते हैं। सूक्ष्म अव्यक्त पंचतन्मात्राएं व्याप्ति से पंच भूतों के रूप में स्वयं प्रकट होती हैं। आदौ वायुरधोलोके जगतः स्थितिकारणम् / तस्योर्ध्व प्रायशो वृत्तिः श्वासस्येवात्र नाभितः // 4 // अन्वय-आदौ जगतः स्थितिकारणं वायुः अधोलोके (तिष्ठति) नाभितः श्वासस्य इव अत्र तस्य प्रायशः उर्वं वृत्तिः // 4 // अर्थ-जगत की स्थिति का कारण यह वायु सर्वप्रथम अधोलोक में निवास करता है। नाभि से उँचे उठने वाले प्राणवायु (श्वास) की तरह . इस वायु की भी प्रायः उर्ध्वगति रहती है। एका रेखा ततो वायो-र्द्वितीया पयसः परा। वायुनोनीयमानत्वाद् घनस्याब्धेरिवोद्गतिः / / 5 / / अन्वय-ततः एका वायोः द्वितीया परा पयसः रेखा ( तयोः) वायुना उन्नीयमानत्वाद् अन्धेः घनस्य इव उद्गतिः // 5 // अर्थ-उसके बाद एक रेखा वायु की तथा दूसरी जल की रेखा मिलकर वायु द्वारा समुद्र से ऊँचे उठाए जाने वाले बादल की तरह उँची उठती है। तेनैव धारा लोकेऽपि दृश्या मेघस्य तादृशी। जलोपरिष्टात् पृथिवी चतुरस्रा तदाकृतिः // 6 // अन्वय-तेन एव लोकेऽपि मेघस्य तादृशी धारा दृश्या। तदा जलोपरिष्टात् चतुरस्त्रा पृथिवी तदाकृतिः (भवति दृश्यते वा) // 6 // अहंद्गीता 262 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org