________________ एकोनत्रिंशत्तमोऽध्यायः श्री गौतम उवाच : ऐन्द्री शक्तिरिवाचिन्त्य-प्रभावा मातृका ह्यसौ। यस्यां विश्वप्रकाशात्मा परमेष्ठी प्रतिष्ठितः // 1 // अन्वय-असौ मातृका ऐन्द्री शक्तिः इव अचिन्त्यप्रभावा हि यस्यां विश्वप्रकाशात्मा परमेष्ठी प्रतिष्ठितः // 1 // अर्थ-श्री गौतमस्वामी ने भगवान से कहा कि आत्मशक्ति की भांति अचिन्त्य प्रभाव वाली यह वर्णमातृका है जिसमें विश्वप्रकाशात्मा परमेष्ठी भगवान प्रतिष्ठित हैं। __ पूर्वलेखाद्वयं किञ्चिदव्यक्तमक्षरं ततः। बिन्दुलेखे मातृकायां कथं कथय नाथ मे // 2 // अन्वय-ततः मातृकायां विन्दुलेखे किञ्चित् अव्यक्तं अक्षरं पूर्वलेखाद्वयं कथं नाथ मे कथय // 2 // अर्थ-तो कृपाकर मुझे बताइए कि उस मातृका में बिन्दुलेखन के पूर्व कुछ अव्यक्त अक्षररूप में दो सीधी रेखाओं का लेखन क्यों किया जाता है ? = 0 श्री भगवानुवाच अव्यक्तपूर्व व्यक्तं स्याद् ग्रन्थसन्दर्भवत् खलु। . व्याप्तेरितीदं तत्सूक्ष्मं सात्मकं भूतपञ्चकम् // 3 // अन्वय-अव्यक्तपूर्व ग्रंथसन्दर्भवत् खलु व्यक्तं स्यात् इति इदं व्याप्तेः तत्सूक्ष्मं भूतपञ्चकं सात्मकं भवति // 3 // एकोनत्रिंशत्तमोऽध्यायः 261 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org