________________ एकोनत्रिंशत्तमोऽध्यायः मात का अहं वाची [श्री गौतम स्वामी ने पूछा है कि मातृका में परमेष्ठि भगवान् प्रतिष्ठित है तो फिर इसके पूर्व दो रेखाओं को लिखने का क्या कारण है? श्री भगवान् ने कहा कि जो वस्तु अव्यक्त होती है वही बाद में व्यक्त होती है वैसे ही मातृका पहले नाभि में अव्यक्त होती है पर बाद में लिखने पर व्यक्त हो जाती है। इस मातृका का सार ॐ है उसकी नीचे की ग्रन्थियाँ नागलोक रूप में कही गई हैं और ऊँची रेफाकृति अग्निमुखमयी होने के कारण स्वर्गरूप में कही गई हैं। इसी ॐ के आकार की एक रेखा आत्मा का तथा दूसरी अर्हत् परमात्मा का स्वरूप निर्देशित करती है। इस प्रकार इन दो रेखाओं से व्यक्त तथा अव्यक्त रूप से अहं पद का ध्यान करने का निर्देश किया गया है। इसी अध्याय में भगवान् ने ॐ कार के समग्र स्वरूप का इतर दर्शनों से भी विवेचन किया है एव सम्पूर्ण मातृका के स्वरूप को समझाने का प्रयास किया है। * * * 260 अहद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org