________________ अन्वय-शुद्धवर्णा पदे रक्ता अध्यक्षा मौक्तिकदर्शनी भगवद्वदनाम्भोजे राजहंसी इव दीव्यति // 20 // ____ अर्थ-शुद्धवर्णवाली पदनिष्ठ (शब्दार्थ समन्वित ) मोक्ष मार्ग बतानेवाली मातृकादेवी भगवान के मुख कमल में राजहंस के समान शोभित होती है। भारती भरतक्षेत्रोत्पत्तेर्गोरसवर्धनात् / सरस्वती महर्षीणां राजते राजतेजसा // 21 // अन्वय-भरतक्षेत्रोत्पत्तेः भारती गोरसवर्द्धनात् सरस्वती महर्षीणां राजतेजसा राजते // 21 // अर्थ-भरतक्षेत्र में उत्पन्न होने के कारण यह भारती है वाणीका संवर्द्धन करने के कारण यह सरस्वती है। यह मातृका महर्षियों के महान् तेज से प्रकाशित है। // इति श्रीअर्हद्गीतायां अष्टविंशतितमोऽध्यायः॥ भविशतितमोऽध्यायः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org