________________ संज्ञाक्षर-लिपि मातृका रूप ब्राह्मी लिपि को भगवती सूत्र में मंगलाचरण में प्रमाण किया गया है। " नमो बंभी लिवीए" तत्वज्ञानं देवतत्त्वा-द्रुतत्त्वादशंकितात् / सूत्रार्थालोकनाद्धर्मो-ऽक्षरभावादिचिन्तनात् // 14 // अन्वय-देवतत्त्वात् गुरुतत्त्वात् अशंकितात् सूत्रार्थालोकनात् अक्षरभावादिचिन्तनात् तत्त्वज्ञानं धर्मः // 14 // अर्थ-देवतत्त्व गुरुतत्त्व एवं श्रद्धापूर्वक सूत्रों के अर्थ का आलोचन होने के कारण तथा मोक्षादि अक्षर भावों का श्रद्धा से चिन्तन होने के कारण जो तत्त्वज्ञान होता है वह धर्म ही है। तदक्षरं पदं ब्राह्मी पूर्वमभ्यस्यते लिपिः / मूलं कलानां सर्वांसां नेत्रं क्षेत्रं गुणश्रिया (यः) // 15 // अन्वय-पूर्व तदक्षरं पदं ब्राह्मी लिपिः अभ्यस्यते कलानां सर्वासां मूलं गुणश्रिया नेत्रं क्षेत्रं / / 15 / / अर्थ-इसीलिए सबसे पहले अक्षर पद रूपा ब्राह्मी लिपि का अभ्यास किया जाता है। यह लिपि सभी कलाओं का मूल होने के कारण तथा अपनी गुण सम्पदा से नेत्र रूप में प्रतिष्ठित है। कुलदेवीव जीवानां जीवनं विश्वपावनम् / ज्ञानोपकारान्मोक्षस्य साधनं धनवर्धनम् // 16 // अन्वय-जीवानां कुलदेवी इव जीवनं विश्वपावनं शानोपकारात् मोक्षस्य साधनं धनवर्धनम् // 16 // अर्थ-यह लिपिदेवी प्राणियों के लिए कुलदेवी की तरह जीवन रूप है एवं संसार को पवित्र करने वाली है। जीव मात्र का ज्ञान से उपकार करने के कारण यह धन बढ़ाने वाली तथा मोक्ष का साधन रूप भी है। अष्टविंशतितमोऽध्यायः - अ. गी.-१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org