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________________ और शिव की मात्रा भी दो दो होने के कारण जिन भी शिव और शिव भी जिन है अर्थात् दोनों एक ही है। गुरावपि शिवध्यान-मर्हन्मार्गप्रतिष्ठिते / मुखवस्त्रिकया मौनमुद्रा स्पष्टयति प्रभोः // 16 // अन्वय-अर्हन्मार्गप्रतिष्ठिते गुरौ अपि शिवध्यानं मुखवस्त्रिकया प्रभोः मौनमुद्रा स्पष्टयति // 16 // / अर्थ-अर्हद् भगवान के मार्ग पर चलने वाले गुरूओं में भी शिवध्यान का वास रहता है क्योंकि वे अपने मुखवस्त्र (मुहपत्ति) से प्रभु की मौन मुद्रा का स्पष्ट संकेत करते हैं। . न शिरोवेष्टनं तेषां द्विजानामिवासद्विधौ / मातृकायां धकारेऽपि शिरोबंधः किमिष्यते // 17 // अन्वय-आसद्विधौ द्विजानां इव तेषां न शिरोवेष्टम् / मातृकायां धकारे अपि किं शिरोबन्धः इष्यते // 17 // अर्थ-यज्ञानुष्ठानादि मंगलकारी प्रसंगों में जिस प्रकार ब्राह्मण सिरपर पगड़ी धारण नहीं करते हैं वैसे ही ये गुरु भी सिर पर पगड़ी धारण नहीं करते हैं। क्या (धर्मसूचक) मातृका धकार पर शिरोबंध की आवश्यकता रहती है अर्थात् नहीं रहती। धार्मिक प्रसंगों में पगड़ी धारण करना कोई धार्मिक विधान नहीं है। श्वेताम्बरधरः सौम्यः शुद्धः कश्चिन्निरम्बरः। कारूण्यपुण्यः सम्बुद्धः शान्तः क्षान्तः शिवो मुनिः // 18 // अन्वय-कारूण्यपुण्यः सम्बुद्धः शान्तः क्षान्तः शिवः सौम्यः मुनिः श्वेताम्बरधरः कश्चित् शुद्धः निरम्बरः // 18 // अर्थ-करूणा जनित पुण्य से युक्त, ज्ञानी, शान्तमूर्ति, क्षमाशील मंगल रूप, सौम्य मूर्ति, कोई साधु श्वेताम्बर वस्त्रधारी होते हैं तो कोई निर्वस्त्र दिगम्बर, पर दोनों ही अहंदू धर्म के मार्ग पर बढ़ने वाले हैं। अर्हद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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