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________________ अथ-जो कैवल्यज्ञान के कारण माया से रहित है, सम दृष्टि है, एवं योगी है, वे शुद्ध, सिद्ध, प्रबुद्ध व शान्त श्रीभगवान् है। मोक्ष सम्पदा की प्राप्ति भगवान के इस रूप से होगी। मत्स्यः कूर्मो वराहश्च हयग्रीवो नृकेसरी।। चन्द्रादयो ग्रहाः पूज्याः पादपमेऽस्य लक्षणः // 13 // अन्वय-अस्य पादपद्मे लक्षणैः मत्स्यः कूर्मः वराहः च नृकेसरी हयग्रीवः चन्द्रादय ग्रहाः पूज्याः // 13 / / अर्थ-इन भगवान् के चरण कमलों में मांगलिक चिन्ह रूप में स्थान पाने से ही मत्स्य, कच्छप वराह, नरकेसरी, विष्णु तथा सूर्यचन्द्रादि ग्रह पूज्य हैं। भगवद्भक्तिभाजोऽमी स्थाप्या भागवतासने / प्रभोः पूजनया पूजा-मीषामेष्या मनीषिभिः // 14 / / अन्वय-भगवद्भक्तिभाजः अमीभागवतासने स्थाप्या मनीषीभिः प्रभोः पूजनया अमीषां पूजा इष्या // 14 // अर्थ-भगवान की भक्ति के पात्र होने से इन मत्स्य कूर्मादि को भी भगवान् के आसन पर स्थापित करना चाहिए। एवं ज्ञानियों को प्रभु की पूजा के द्वारा इनकी (वीतराग परमात्मा के मंगल प्रतीक) मानकर पूजा भी करनी चाहिए। एवं जिनः शिवो नान्यो नाम्नि तुल्येऽत्र मात्रया / स्थानादि योगाज्जशयो-र्न वयोश्चैक्यभावनात् // 15 // अन्वय-अत्र स्थानादि योगात् जशयोः नवयोः च ऐक्यभावनात मात्रया तुल्ये नाम्नि एवं जिनः शिवः न अन्यः // 15 // अर्थ-इस प्रकार ज और श दोनों के तालव्य अर्थात् एक ही स्थानीय होने के कारण न और व में भी एकता होने के कारण तथा जिन सप्तविंशतितमोऽध्याय 249 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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