________________ प्रत्येक वर्ग का पांचवा अक्षर अनुनासिक होता है उन ङ् ञ् ण् न् म् को एक ही बिन्दु से 0 से व्यक्त किया जा सकता है। य र ल व अन्तस्थ कहलाते हैं एवं श स प ह उष्म कहलाते हैं अन्तस्थ तो अर्धस्वर ही कहलाते हैं। अकारो वर्णमुख्योऽयं केवलात्मा स तीर्थकृत् / नाभिभूर्मरूदेवास्य योनिलोके प्रसिद्धिभाक् // 15 // अन्वय-अयं अकारो वर्णमुख्यः केवलात्मा स तीर्थकृत् नाभिभूः अस्य योनि मरूत्एव लोके प्रसिद्धिभाक् / / 15 / / अर्थ-यह अकार सभी वर्गों में मुख्य है एवं वर्णमाला रूप तीर्थ का स्रष्टा है। वह नाभि से उत्पन्न होने वाला है। इसकी योनि पवन है ऐसा लोक में प्रसिद्ध है। दूसरा अर्थ = यह अ सभी वर्गों में मुख्य है एवं तीर्थंकर आदिनाथ भगवान रूप है इनके जनक नाभिराजा है तथा माता मरूदेवी है ऐसा संसार में प्रसिद्ध है। अकारप्रभवाः सर्वेप्येवं वर्णाः प्रकीर्तिताः / मातृकायां तदुच्चारे ते नाकारपरिग्रहः // 16 // अन्वय-एवं सर्वे वर्णा अपि अकार प्रभवाः प्रकीर्तिताः तेन मातृकायां तदुच्चारे अकारपरिग्रहः / / 16 // अर्थ-इस प्रकार सभी वर्ण अकार से उत्पन्न हुए कहे गए हैं इसीलिए मातृका पाठ में उसका उच्चारण करने के लिए सर्वप्रथम अकार का ही ग्रहण किया जाता है। केऽपि सार्वमुखस्थान-मवर्णमृचिरे ततः / मात्रायोगेप्युवर्णान्त-स्तस्य शेषस्तु संधिजः // 17 // अन्वय-केपि अ वर्ण सार्वमुखस्थानं ऊचिरे मात्रा योगे अपि इ उ वर्णान्तः तस्य शेषः तु संधिजः // 17 // षड्विंशोऽध्यायः अ. गी.-१६ 241 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org