________________ अर्थ-वायु जिस उच्चारण स्थान पर आघात करती है उसी के अनुसार वर्ण बनते हैं। श्वास वायु के प्रयत्न स्थान से मिलने पर जो ध्वनि व्यक्त होती है वह व्यञ्जन है। तत्राप्याद्यद्वितीयानां वाणां शषसेऽपि च / अघोषत्वं घोषवत्त्वं वर्णे तेभ्यः परे स्फुटम् / / 12 // अन्वय-तत्रापि आद्यद्वितीयानां वाणां शषसे पि च अघोषत्वं तेभ्यः परे वर्णे घोषत्वं स्फुटम् // 12 // अर्थ-उन व्यञ्जनों में भी प्रत्येक वर्ण का पहला दूसरा अर्थात् क च ट त प तथा ख छ ठ थ फ और श ष स वर्ण अघोष होते हैं उनके अतिरिक्त प्रत्येक वर्ण के तीसरे व चौथे तथा य र ल व आदि घोष वर्ण होते हैं। सदीधैर्व्यञ्जनैः षष्ट्या घटी तत्कालवृद्धितः / श्वासाति योगात्कंठ्योऽपि हास्यादौरस्य एव सः // 13 // अन्वय-तत्कालवृद्धितः सदीधैः व्यंजनैः षष्ट्या घटी श्वासाति योगात् सः कंठ्य ह अपि औरस्य स्यात् // 13 // अर्थ-बोलने में समय की मात्रा बढ़ने से दीर्घ व्यञ्जनों सहित व्यञ्जन साठ प्रकार के होते हैं। (सामान्य प्रयोग में नहीं किन्तु ) प्राण वायु के योग से कण्ठय ह भी उरस्थ होता है / समान पंचके स्थानः प्रसंगात् पंचवर्यपि / अंतस्थाश्च तथोष्माणः स्वरवर्गानुगामिनः // 14 // अन्वय-प्रसंगात् पंचवर्गि अपि पंचके समानः स्थानः स्वरवर्गा नुगामिनः अन्तस्थाः तथा च उष्माणः / / 14 // __ अर्थ-प्रसंग से पांचो वर्गों का (क वर्ग ख वर्ग आदि) पांचवा स्थान समान होता है। अन्तस्थ तथा उष्म स्वर वर्ग का अनुसरण करते हैं। अर्हद्गीता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org