________________ अनुक्रम में स्वार के पश्चात् माने गये हैं। यह होता है स्वार में नाद और बिन्दु के प्रयोगसे / बिन्दुद्वये विसर्गः स्या-नेतौ पश्चात्स्वरं विना / स्वरांनुरणनरूपौ तौ घण्टादीर्घ निनादवत् // 9 // अन्वय-पश्चात् बिन्दुद्वये विसर्गः स्यात् न एतौ स्वरं विना, घण्टादीर्घ निनादवत् तौ स्वरानुणन रूपौ॥९॥ ___ अर्थ-अब विसर्ग का स्वरूप निदर्शन कहते हैं-स्वर के बाद दो बिन्दु होने पर विसर्ग होता है। ये दोनों बिन्दु स्वर के बिना सम्भव नहीं होते हैं। घण्टे के दीर्घ गुंजन की तरह वे स्वर के बाद अनुगुंजित होते हैं। जैसे रामः में म् + अ + : / ह्रस्वदीर्घ श्वासवृद्धया मात्राधिक्यं ततः प्लुते / गीतादावेव तत्कार्य वर्णाम्नाये न तद्हः // 10 // अन्वय-श्वासवृद्धया हस्वदीर्धे ततः प्लुते मात्राधिक्यं गीतादौ एव तत्कार्य वर्णाम्नाये तद् ग्रहः न // 10 // अब ह्रस्व दीर्घ एवं प्लुत का रूप निदर्शन करते हैं - अर्थ-श्वास के उतार चढ़ाव से यह स्वर हस्व और दीर्घ दो प्रकार का होता है। तीसरे प्रकार प्लुत में एक मात्रा की अधिकता होती है / इसका ग्रहण संगीतादि में होता है। व्याकरण शास्त्र में प्लुत का प्रयोग नहीं होता है। (त्रिमात्रस्तु प्लुतः) . वायोर्यथास्थानघातं वर्णोत्यादेः प्रयत्नतः / श्वासात्प्रकृतिसंयोगे व्यक्तं व्यञ्जनमुच्यते // 11 // अन्वय-वायोः यथास्थानघातं वर्णोति आदेः श्वासात् प्रकृतिसंयोगे प्रयत्नतः व्यक्तं व्यञ्जनं उच्यते // 11 // षड्विंशतोऽध्यायः 239 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org