________________ अर्थ-अर्थ अभिधान और प्रत्यय ये तीनों एकार्थक पर्याय शब्द हैं। इसका बोध होने से वाच्य और वाचक में एकता रहती है। अकारादेव सर्वेषा-मक्षराणां समुद्भवः / स्थानयत्नादिभेदेन स्याद्विशेषः प्रकाशते // 4 // अन्वय-सर्वेषां अक्षराणां अकारात् एव समुद्भवः प्रकाशते स्थानयत्नादिभेदेन विशेषः स्यात् // 4 // अर्थ-सभी अक्षरों की उत्पत्ति अकार से ही होती है पुनः स्थान यत्न आदि के भेद से वह विभिन्न प्रकार का हो जाता है (अकार अट्ठारह प्रकार का होता है। सम्पूर्ण मातृका भी अकार का ही परिणाम है / अकार स्वरो में तो है ही वह व्यञ्जनों में भी है। कंठ से अ अनुनासिक अं तालू से इ विसर्जनीय अः मूर्द्धा से उ यही अकार यदि जीभ के सहयोग से बोलें तो ये व्यंजन रूप होंगे। कंठ से- क वर्ग दन्त से- त वर्ग तालू से- च वर्ग ओष्ठ से- प वर्ग मूर्दा से- ट वर्ग वृद्धौ अकारेयाकारः स्पष्टो मात्रापरिग्रहात् / पृष्ठे इकारस्तदैर्ये-पीकारोऽघोऽप्युकारकः // 5 // अन्वय-अकारे वृद्धौ हि आकारः मात्रा परिग्रहात् स्पष्टः पृष्ठे इकारः तदैध्ये अपि ईकार अधः अपि उकारकः // 5 // ___ अर्थ-अब स्वरमाला की उत्पत्ति कहते हैं। अकार में मात्रा के परिग्रह से अर्थात् वृद्धि होने पर आकार बनता है। तालू (पृष्ठ) से षड्विंशोऽध्यायः ર૩૭ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org