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________________ और डांगर (धान) की गति से एक ही बताया गया है अर्थात् डांगर (छिलके समेत चावल) और चावल (छिलके रहित धान) दोनों एक ही हैं। भवेत्पुनर्भवायैव मनुष्यस्तन्दुलो यथा । उत्पत्यै फलपत्रादे-निस्तुषस्त्वपुनर्भवः ॥ ४ ॥ अन्वय-यथा तन्दुलः तथा एव मनुष्यः (अपि) पुनर्भवाय एव भवेत् । फलपत्रादेः उत्पत्यै (सतुषः ) अपुनर्भवः तु निस्तुषः ॥ ४ ॥ ____ अर्थ-जिस प्रकार तुषयुक्त चावल अंकुरित, पल्लवित, पुष्पित एवं फलान्वित होता ही है तथा तुपरहित धान का अंकुरण नहीं होता वैसे ही मनुष्य की भी गति सतुष धान की तरह होती है। भव बीजात्मक होनेसे यह आत्मा जन्म जरा मरण के चक्कर में फंसा रहता है और मोक्षपद तुषरहित धान जैसा है क्योंकि वहाँ भवबीज नही होने से जन्म मरण नष्ट हो जाते हैं। एवं यावदयं कर्म विदघत्कर्मरेणुना। लिप्यते क्षिप्यते तावद्भवजालेङ्गभृद्भशम् ॥ ५ ॥ अन्वय-एवं यावद् अयं (आत्मा) कर्मरेणुना कर्म बिदघत् तदा स लिप्यते क्षिप्यते तावद् भवजाले अङ्गभृशं भृद् (भवति)॥५।। अर्थ-इस प्रकार जब तक यह आत्मा कर्मद्वारा कर्म रेणु को धारण करती रहती है तब तक कर्म से लिप्त तथा उसमें डूबी रहती है। जब तक ऐसा होता है तब तक इस आत्मा को भवजाल में पुनः पुनः जन्म लेना पड़ता है। निश्चयात्केवलोऽप्यात्मा मलवान व्यवहारतः । समलं निर्मलं वांभशातकुम्भमिव द्विधा ॥ ६ ॥ अन्वय-अयं आत्मा निश्चयात् केवलः व्यवहारतः मलवान् शान्तकुम्भं इव समलं निर्मलं वा अंभः द्विधा ॥ ६॥ त्रयोविंशोऽध्यायः २१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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