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" अन्वय-यथा अंशुजन्मना प्रकाशेन घटस्य दीपः स्यात् (तथैव) स्पष्टपर्यायकर्ता अयं आत्मा शेयकारकः ॥९॥
__ अर्थ-जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश से जगत् प्रकाशित होता है और दीप के प्रकाश से घट प्रकाशित होता है वैसे ही प्रत्यक्ष दिखने वाले पर्यायों (पदार्थों ) का प्रकाशक भी यह आत्मा है ।
विवेचन-द्रष्टा के बिना जगत् द्रश्य कैसे हो सकता है ? आत्मा की प्रकाशक शक्ति से जगत् द्रश्यमान होता है।
चिदानन्दमयं ज्योतिर्यदास्य प्रकटीभवेत् । तदात्मा परमात्माऽयं शिवः सिद्धोऽभिधीयते ॥ १० ॥
अन्वय-यदा अस्य चिदानन्दमयं ज्योतिः प्रकटीभवेत् तदा अयं आत्मा परमात्मा शिवः सिद्धः अभिधीयते ॥१०॥
अर्थ-जब इस आत्मा की चिदानन्दमय ज्योति प्रकट होती है तब यह आत्मा, परमात्मा, शिव, सिद्ध आदि नामों से अभिहित की जाती है।
यथा यथाऽस्य मोहान्ध्यं व्यपैति स्वगुणोदयात् । उदेति पारमैश्वर्यं तथैन्द्रज्योतिरद्भतम् ॥ ११ ॥
अन्वय-स्वगुणोदयात् यथा यथा अस्य मोहान्ध्यं व्यपैति तथा अद्भुतं ऐन्द्रज्योतिः पारमैश्वर्य उदेति ॥११॥
अर्थ-अपने गुणों के उदय होने से जैसे जैसे इस आत्मा का मोहान्धकार नष्ट होता है वैसे वैसे इसकी अद्भुत्त आत्मज्योति और पारमैश्वर्य उदय होता है। मोहरुपी अंधकार के दूर होने से जो स्वयं है वही अनावृत होकर प्रकाशित होता है।
संपूर्ण पारमैश्वर्य सिद्धेऽस्ति परमेष्ठिनि।
यद् ज्ञान ध्यान जापाद्यैः सिद्धयोऽष्टौ महर्धयः ॥ १२ ॥ १९८
अर्हद्गीता
अय
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