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________________ .. अन्वय-सिद्धपरमेष्ठिनि सम्पूर्ण पारमेश्वर्य अस्ति । यद् शान ध्यान जापाद्यैः अष्टौ महर्धय सिद्धयः ॥ १२॥ ... अर्थ-सिद्ध भगवान में सम्पूर्ण पारमैश्वर्य है। (इसलिये) उनके ज्ञान ध्यान एवं जाप आदि से बहुमूल्य अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। प्रकटे केवले ज्ञाने योगातिशयशालिनि । प्रसिद्धं पारमैश्वर्यं स्पष्टमर्हति चाहति ॥ १३ ॥ अन्वय-योगातिशयशालिनि अर्हति केवले ज्ञाने प्रकटे सति प्रसिद्धं पारमैश्वर्यं स्पष्टं अर्हति ॥ १३॥ अर्थ-योग के अतिशय से युक्त अर्हत् भगवान् में केवलज्ञान के प्रकट होने पर जगत् प्रसिद्ध पारमैश्वर्य प्रत्यक्ष दिखाई देता है। सिद्धयोगी अरिहंत परमात्मा में पारमैश्वर्य प्रमाणित होता है। यदुक्तयोगमार्गेण यद्धयानादपि यद्भवेत् । तत्तत्कर्तृकमेवेष्टं वैद्यैर्मान्त्रैः यथा सुखं ॥ १४ ॥ अन्वय-यदुक्तयोगमार्गेण यत् ध्यानात् अपि यत् भवेत् तत् तत् कर्तृकं एव इष्टं यथा वैद्यैः मान्त्रैः सुखं इष्टम् ॥ १४ ॥ अर्थ-जिनके द्वारा कहे गए योगमार्ग से, तथा जिनके ध्यान से जो वस्तुएं होती हो उन उन वस्तुओं के कर्ता वे सिद्ध या अर्हत् हैं। जैसे वैदिक मंत्रो से जो सुख मिलता है उस सुख का कर्त्ता वैदिक मंत्रो को मानते हैं वैसे ही प्राप्ति के कारण रूप होने से वे अर्हत् या सिद्ध ही कर्ती हैं। जिनोक्तयोगेनानेक-लब्धिर्विष्णुमुनेरिव । ऐन्द्रर्द्धि मुक्तिमुक्तिश्वा-ऽवश्यं वश्यं जगत्त्रयं ॥ ॥ १५ ॥ अन्वय-जिनोक्तयोगेन विष्णुमुनेः इव अनेकलब्धिः (भवति) ऐन्द्रर्द्धि भुक्तिमुक्तिः च अवश्यं जगत्त्रयं वश्यं भगति ॥१५॥ एकविंशतितमोऽध्यायः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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