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अर्थ-आत्मतत्त्व के विषय में भाव से श्रवण एवं मनन (दोनों) करनेसे ही आत्मा का साक्षात्कार होता है। माया से यही जीव विमुक्त परमेश्वर हो जाता है।
श्रोतव्योऽध्ययनैरेष मंतव्यो भावनादिना। निदिध्यासनमस्यैव साक्षात्काराय जायते ।। १२ ।।
अन्वय-अध्ययनैः एष श्रोतव्यः भावनादिना मन्तव्यः निदिध्यासनं अस्यैव साक्षात्काराय जायते ॥ १२ ॥
अर्थ-(ध्यानरूपी आंतर तप की महिमा समझाते हुए कहते हैं) गुरु मुख से शास्त्र श्रवण, अध्ययन बारह भावनाओंका मनन तथा निरन्तर ध्यान से इस आत्मा का साक्षात्कार संभव होता है।
साक्षाच्चक्रुः पूर्वमतः ये ध्यानात् परमर्षयः । तेऽपि ध्येया सदामीषां शुद्धाचरणचिन्तया ॥ १३ ॥
अन्वय-अतः ये परमर्षयः ध्यानात् पूर्व साक्षाच्चक्रुः अमीषां शुद्धाचरणचिन्तया ते अपि सदा ध्येया ॥ १३ ॥
अर्थ-अतः जिन महान् ऋषियों ने पूर्वकाल में ध्यान से आत्म साक्षात्कार कर लिया है उनके शुद्ध आचरण के बारे में चिन्तन तथा सदा उनका ध्यान भी करना चाहिए।
यो ध्यायति यथाभावं तादात्म्यं लभते हि सः । संसर्गयोगाद् ध्यानेन भ्रमरी स्यादिहेलिका ॥ १४ ॥
अन्वय-यो यथाभावं ध्यायति स हि तादात्म्यं लभते। संसर्गयोगात् ध्यानेन इह इलिका भ्रमरी स्यात् ॥ १४ ॥
अर्हद्गीता
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