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अर्थ-यह भाव पद् और अर्थ युक्त एवं (पदार्थ) सत् रूप और अर्थ क्रिया युक्त है, सर्वोत्कृष्ट है, गुणातीत है, शुद्ध द्रव्यरूप है, आधारभूत है, प्रमेय है एवं अन्वर्थ नाम वाला है।
प्रमेय-प्रमाण से जिसे जाना जाता है। भाव- चैतन्य। अनन्तः परिणामी चा-नन्तशक्तिधरः स्वभूः । लोकालोकतया ख्यातः सिद्धो बुद्धः शिवोऽव्ययः ॥ ४॥
अन्वय-अनन्त परिणामी च अनन्तशक्तिधरः स्वभूः लोकालोकतया आरव्यातः सिद्धः बुद्धः शिवः अव्ययः ॥ ४॥
अर्थ-वह पदार्थ अनन्त परिणामी है अनन्तशक्तिमान् स्वयंभू है लोकालोक में प्रसिद्ध है, सिद्ध है, बुद्ध है, शिव है एवं अव्यय तथा अविनाशी हैं।
स्यादेकं केवलं ज्ञानं ज्ञेयं तस्यैकमिष्यते । - ज्ञानाद् ज्ञेयं न मिन्नं स्यात्सर्वथा स्वप्रकाशवत् ॥ ५॥
अन्वय-एकं केवलं ज्ञानं स्यात् तस्य ज्ञेयं एक इष्यते। ज्ञानात् शेयं न भिन्नं स्यात् सर्वथा स्वप्रकाशवत् ॥५॥
अर्थ-वह भाव पदार्थ (चैतन्य ) केवल ज्ञान रूप है। उसका ज्ञेय भी एक ही है और ज्ञान से ज्ञेय भिन्न नहीं है। अर्थात् जिस प्रकार सूर्य एवं सूर्य का प्रकाश भिन्न नहीं हैं वैसे ही आत्मा एवं उसकी चेतना दोनों ही अभिन्न हैं।
ज्ञेयग्रहपरिणामाद् ज्ञानी ज्ञेयाकृतिः स्मृतः । तेनात्मा भगवान्विष्णु-रर्हन् ब्रह्ममयः स्वयम् ॥ ६॥
अन्वय-ज्ञेयग्रहपरिणामाद् शानि ज्ञेयाकृतिः स्मृतः तेन आत्मा स्वयं भगवान् विष्णुः अर्हन् ब्रह्ममयः ॥६॥ १४२
अहंद्गीता
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