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पञ्चदशोऽध्यायः
श्री गौतम उवाच ऐन्द्रपूज्य जगन्नाथ प्रसादेन निवेदय । किं तत्त्वं विदुषा ज्ञेयं साधनं शिवसम्पदः ॥१॥
अन्वय-ऐन्द्र पूज्य जगन्नाथ शिवसम्पदः साधनं किं तत्त्वं विदुषा ज्ञेयं प्रसादेन निवेदय ॥१॥
अर्थ-श्री गौतमस्वामी ने पूछा आत्मा से पूजित एवं सभी इन्द्रों से पूजित हे जगत्प्रभो, कृपा कर यह बताइए कि शिव सम्पत्ति का साधन रूप ऐसा कौन सा तत्त्व है जिसे विद्वानों को जानना चाहिए ?
श्री भगवानुवाच सत्त्वरूपं महातत्त्वं यद्ब्रह्मेत्यभिधीयते । तदेकं परमं वस्तु द्वैतं तत्र न भासते ॥२॥
अन्वय-सत्त्वरूपं यत् महातत्त्वं ब्रह्म इति अभिधीयते तदेक परमं वस्तु तत्र द्वैतं न भासते ॥२॥
अर्थ-श्री भगवान ने कहा हे गौतम सत्त्वरूप महातत्त्व जो ब्रह्म कहा जाता है वही एक परम वस्तु इस संसार में है, उसकी प्राप्ति होने पर द्वैत नहीं रहता है।
भावः पदार्थः सद्रूपोऽस्ति क्रियार्थः परो गुणी ।
शुद्धद्रव्यं तथाधारः प्रमेयश्चाभिधान्वयी ॥३॥ ___ अन्वय-भावः पदार्थः सद्रपः अस्ति क्रियार्थः परः गुणी (अस्ति) तथा आधारः शुद्धद्रव्यं प्रमेयश्च अभिधान्वयी॥३॥
पञ्चदशोऽध्यायः
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