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________________ अर्थ - जीव की शुद्धचैतन्यस्वरूप भावना से और प्राणायाम के बल से संयम करके तथा मंत्र ध्यान से ब्रह्मरन्ध्र में लीन हुआ मन समस्त विश्व का प्रकाशक होता है । यहाँ तीन प्रकार की साधनाएं निदर्शित की गई हैं। वातोदयाद्भवेच्चित्ते जड़ता ऽस्थिरताभयम् । शून्यत्वं विस्मृतिः श्रान्ति - ररति-श्चितविभ्रमः ॥ ४ ॥ अन्वय-चित्ते वातोदयात् जड़ता अस्थिरता भयं, शून्यत्वं विस्मृतिः श्रान्तिः अरतिः चित्त विभ्रमः भवेत् ॥ ४ ॥ अर्थ - आयुर्वेदोक्त वात, पित्त, कफ रोगात्मक स्वरूप का मन पर प्रभाव बताते हैं। वायु के प्रभाव के कारण मन में जड़ता, अस्थिरता, भय, रिक्तता, विस्मृति, थकान, अरति तथा भटकाव होता है । पित्तोदयाच्चंचलत्वं साहसं क्रुद्धता स्मरः । फोदयात्स्नेह हास्य - शोका मौढयं रतिः परा ॥ ५ ॥ अन्वय- पित्तोदयात् चंचलत्वं साहसं क्रुद्धता स्मरः । कफोदयात् हास्य शोका मौढयं रतिः परा ॥ ५॥ अर्थ - मन में पित्त के उदय से चंचलता, साहस, क्रोध एवं काम की भावना तथा कफ के उदय से हँसी, शोक, मूर्खता, उत्कृष्ट इत्यादि भावनाओं का संचार होता है । ज्ञानावरणसंज्ञेयो वातः सिद्धान्तवादिनाम् । पित्तमायुः स्थिते वाच्यं नामकर्म कफात्मकम् || ६ ॥ अन्वय- वातः सिद्धान्तवादिनां ज्ञानावरणसंज्ञेयः । पित्तं आयुः स्थितेः नामकर्म कफात्मकं वाच्यम् ॥ ६ ॥ चतुर्दशोऽध्यायः Jain Education International For Private & Personal Use Only १३३ www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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