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अन्वय-पंचकधिया पंचमी, षड्वस्तुभावनात् षष्ठी, सप्तधा भावात् सप्तमी अष्टधार्थतः अष्टमी ॥३॥
अर्थ-मन की एकत्व भावना में प्रथमातिथि, द्वैत की भावना में द्वितीया, त्रित्व (चंचलता ) की भावना में तृतीया, त्याग के योग से चतुर्थी, पांच की (समग्र समूह) बुद्धि में पंचमी, छः वस्तुओं की भावना में षष्ठी, सात प्रकार के भावों से सप्तमी, आठ आठ की भावना की इच्छा में अष्टमी। अर्थात् ब्रह्म एक है, मानने पर प्रथमा, द्वि स्वरूप मानने पर द्वितीया, सत्त्व रजः तमः आदि के तीन तीन विभागों की बुद्धि में तृतीया दान शील तप भाव आदि की भावना में चतुर्थी, पंच परमेष्ठि आदि पांच २ वस्तुओं की विचारणा में पंचमी, षड्ऽव्यादि छः छः वस्तुओं की भावना में षष्ठी, सप्तनयादि सात सात वस्तुओं की भावना में सप्तमी अष्ट कर्मादि आठ आठ वस्तुओं की भावना मे अष्टमी ।
ज्योतिष शास्त्रानुसार तिथियों के स्वामी :प्रतिपदा - अग्नि
नवमी - दुर्गा . द्वितीया - ब्रह्मा
दशमी - काल तृतीया - गौरी
एकादशी - विश्वेदेवा - गणेश
द्वादशी - विष्णु पंचमी - शेषनाग
त्रयोदशी - कामदेव षष्ठी - कार्तिकेय
चतुर्दशी - शिव सप्तमी - सूर्य
पूर्णिमा - चन्द्रमा अष्टमी - शिव
अमावस्या - पितर
चतुर्थी
एवं यत्संख्यया भाव-श्चिन्त्यते दृश्यतेऽथवा । कथ्यते तिथिरावेद्यः प्रश्ने तत्संख्यया हृदः ॥४॥
अन्वय-एवं यत् संख्यया भावः चिन्त्यते अथवा दृश्यते प्रश्ने तत्संख्यया हृदः तिथिः आवेद्यः कथ्यते ॥४॥ त्रयोदशोऽध्यायः
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