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________________ अर्थ - इस प्रकार जिस संख्या से पदार्थ देखा जाता है अथवा उसके भाव को सोचा जाता है उस संख्या के अनुसार प्रश्नकर्ता की हृदय की तिथि ध्यान कर कही जाती है । लिखित्वाङ्कान् पंचदश यद्वा तन्दुलपुञ्जकान् । विन्यस्य नाणकं तेषु क्रियते तिथिनिर्णयः ॥ ५॥ अन्वय- पंचदश अङ्कान् लिखित्वा यद्वा तन्दुलपुञ्जकान् तेषु नाणकं विन्यस्य तिथि निर्णयः क्रियते ॥ ५ ॥ अर्थ - १५ अंको को लिखकर या चावल की १५ ढेरियों को रख उन पर जिस अंक अथवा ढेरी पर प्रश्नकर्ता धन रखता है उसी के अनुसार तिथि निर्णय किया जाता है । श्रावणः स्यात् श्रुतौ धर्म शास्त्र भाद्रपदः पुनः । धर्मकर्मच्छिवप्राप्तेरिच्छया तपसोऽश्विनः ॥ ६ ॥ अन्वय- श्रुतौ श्रावणः पुनः धर्मशास्त्रे भाद्रपदः धर्मकर्मच्छिव प्राप्तेः इच्छया तपसः अश्विनः ॥ ६ ॥ अर्थ - धर्म श्रवण में श्रावण मास, धर्मशास्त्र चिन्तन में भाद्रपद मास, धर्म कर्म एवं मोक्ष प्राप्ति की इच्छा से तप करने पर आश्विन मास । १२४ स्नान भूषणसाम्राज्य - वाञ्छया कार्तिकः स्मृतः । जगच्छीर्षे शिवपदं तन्मार्गेच्छापरः परः ||७| अन्वय- स्नान भूषण साम्राज्य वाञ्छ्या कार्तिकः स्मृतः । जगत् शीर्षे शिवपदं तन्मार्गे इच्छापरः परः ||७|| अर्थ- स्नान, आभूषण, साम्राज्य की इच्छा में कार्तिक मास कहा गया है, जगत में सर्वोच्च बनने एवं शिवपद प्राप्ति के लिए उस मार्ग में चलने की इच्छा ही मार्गशीर्ष मास है। Jain Education International For Private & Personal Use Only अर्हद्गीत www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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