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त्रयोदशोऽध्यायः
मन में कालचक्र का निरूपण
[ गौतम स्वामी ने पूछा है कि भगवान चन्द्रकलाएं मन में ही प्रकाशित है तो इसका तिथि वारों से सम्बन्ध निदर्शित कीजिए ।
श्री भगवान ने उत्तर दिया कि प्रतिपदा से लेकर पूनम पर्यन्त तिथियाँ मन की ही अवस्थाएं हैं जैसे मन की एकता में प्रतिपदा और द्वित्व भावना में दूज होती है इसी प्रकार मन की अवस्थाओं में ही बारह मासों का स्वरूप अवस्थित है। श्रुत धर्म की भावना ही श्रावण मास है एवं शास्त्र भावना भाद्रपद मास है। धर्म कर्म एवं कल्याण की प्राप्ति में आश्विन मास माना गया है। सात वारों का भी मन की स्थितियों से अनुसंधान किया गया है । मन में भोजन पान की इच्छा सूर्योदय स्वरूप रविवार है तो शान्त स्वरूपता सोमवार है । इसी प्रकार नक्षत्रों का भी शरीर की मानसिक स्थितियों में समाहार हो जाता है ' जैसे अर्थ संग्रह में भरणी एवं व्रत तथा तपस्या में कृतिका नक्षत्र माना जाता है ।
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त्रयोदशोऽध्यायः
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