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द्वादशोऽध्यायः
चन्द्रगति से मनोगति का समन्वय
[गौतम स्वामी ने पूछा है कि भगवान् चन्द्रगति से ज्योतिष शास्त्री भविष्य की कल्पना करते हैं तो उस भावी को मन से कैसे जाना जा सकता है ? भगवान रूपक के माध्यम से समझाते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार सूर्यादय से कमल खिलता है वैसे ही ज्ञान सूर्य के प्रकाशित होने पर मन की बुद्धि रूपी कला प्रस्फुटित होती है। मन की कलांए साठ होती हैं एवं वर्ष भी साठ प्रकार के। अपने में ही सूर्य सम्बन्धी समाचारण उत्तरायण वा दक्षिणायण प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। जब हम प्रवृत्तिमय होते हैं तो यह हमारे चित्त का उत्तरायण है एवं जब हम निद्रावश होते हैं तो चित्तकी दक्षिणायन अवस्था होती है। मन की विभिन्न अवस्थाएँ ही शरीर में ऋतुचक्र का विधान करती हैं। अधर्म भावना से मन की रात एवं शुद्ध भावना से मन का दिन होता है। इसी प्रकार ग्रह राशियों का भी सम्बन्ध शरीर की तथा मानसिक क्रियाओं से बताया गया है। शुभाशुभ भावनाओं के प्रतीक रूप में शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की कल्पना की गई है इसलिये मनकी स्थितियों एवं गृह योगों से तात्कालिक कार्य के फलाफल का कालानुसार निर्णय करना चाहिए।
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द्वादशोऽध्यायः
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