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द्वादशोऽध्यायः
श्री गौतम उवाच ऐन्दवाच्चारतो ज्योतिः शास्त्रेण भावि मन्यते । मनसा तत्कथं वेद्यं तन्मार्ग कथय प्रभो ॥१॥
अन्वय-श्री गौतम उवाच-ऐन्दवाश्चारतः ज्योतिः शास्त्रेण भाविमन्यते प्रभो मनसा तत् कथं वेद्यं तन्मार्ग कथय ॥१॥
___ अर्थ-गौतम स्वाभी ने भगवान से पूछा कि हे प्रभो ! ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र की गति से भावि की सूचना दी जाती है तो उसको मन से कैसे जाना जा सकता है हे प्रभो! आप उस मार्ग को बताइए।
जिस शास्त्र के द्वारा ग्रहादि की गति एवं प्रभाव आदि के विषय में जाना जाता है उसे ज्योतिष शास्त्र कहते हैं। भारतीय मनीषियों ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि 'यत्पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे' अर्थात् जो पिण्ड (मनुष्य शरीर) में है कही ब्रह्माण्ड में है। इस नियम के आधार पर ही उन्होंने अपने योगबल तथा सूक्ष्म प्रज्ञा द्वारा शरीररूप और मण्डल का भलीभांति पर्यवेक्षण कर के तदनुरूप आकाशीय सौरमण्डल जनित प्रभावों को मानव शरीर में देखा है।
श्री भगवानुवाच मानसान्येव वर्षाणि अयनं वार्तवस्तथा । मासा पक्षो दिनं वेला वारा मं तिथयः पुनः ॥२॥
अन्वय-मानसानि एव वर्षाणि अयनं वा ऋतवः तथा, मासा पक्षः दिनं वेला वाराः भं तिथयः पुनः ॥२॥ ११२
अहंद्गीता
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