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________________ उपाध्याय मेघविजयजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व यशोविजयजी उपाध्याय के समकालीन मेधविजयजी उपाध्याय का नाम जैन संस्कृत की परम्परा में अपना गौरवपूर्ण स्थान रखता है। यशोविजयजी के युग में स्वयं यशोविजयजी, विनयविजयजी एवं मेघविजयजी की संस्कृत कृतियों के द्वारा परवर्ती युग का जैन संस्कृत साहित्य प्रभावित दिखाई देता है। वे उपाध्याय थे एवं व्याकरण, न्याय, साहित्य, अध्यात्म विद्या, योग तथा ज्योतिर्विज्ञान में निष्णात थे। सत्रहवी शती के जैनाचार्यों में इनका स्थान विशिष्ट रहा है। ये मुगल सम्राट अकबर प्रतिबोधक प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री हीरविजयसूरीश्वरजी की परम्परा में दीक्षित हुए थे तथा इनके दीक्षा गुरु का नाम पंडित कृपाविजयजी था। उनकी गुरु परम्परा इस प्रकार है-हीरविजयजी-कनकविजयजी-शीलविजयजीसिद्धिविजयजी-कमलविजयजी-कृपाविजयजी-मेघविजयजी। तपागच्छीय आचार्यप्रवर विजयदेवसूरि के पट्टधर आचार्य विजयप्रभसूरि ने उन्हें उपाध्याय पदवी से विभूषित किया था । इस बात को स्वयं उपाध्याय मेघविजयजी ने अपनी काव्य प्रशस्तियों में स्वीकार किया है। इनका पाण्डित्य असाधारण था एवं दृष्टि मर्मभेदिनी। इन्हीं विजयदेवमूरि पर उन्होंने पाली जिले के सादड़ी ग्राम में सं० १७२७ के चातुर्मास की अवधि में " देवानन्दाभ्युदयमहाकाव्य" का प्रणयन किया था। इनके द्वारा प्रणीत ग्रंथों की सूची निम्नलिखित है :१. अर्हद्गीता, भगवद्गीता अथवा तत्त्वगीता २. युक्ति प्रबोध ३. लघुत्रिषष्टी चरित्रं (अमुद्रित) ४. हेम कौमुदी (चंद्रप्रभा) व्याकरण ५. श्रीशान्तिनाथ चरित्रम् ६. मेघदूत समस्यापादपूर्ति ७. देवानन्दाभ्युदय माघकाव्य समस्यारूपं (श्रीविजयदेव महात्म्य विवरणम्) ८. शंखेश्वर प्रभुस्तवन ९. श्री विजयसेन सूरि दिविजयकाव्य - तपागच्छ पट्टावली १०. मातृकाप्रसाद ॐनमः सिद्धंका वर्णनरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001512
Book TitleArhadgita
Original Sutra AuthorMeghvijay
AuthorSohanlal Patni
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1981
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Sermon
File Size16 MB
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