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अहंदगीता के प्रारम्भिक अध्यायों को पूज्य जम्बूविजयजी ने अपने बेग चातुर्मास के दौरान मनोयोग पूर्वक सुना था एवं समुचित मार्ग दर्शन दिया था तदर्थ मैं पूज्यश्री का आभारी हूँ।
पुस्तक जिस रूप में आपके सामने आ रही है उसका श्रेय जैन साहित्य विकास मंडल के कर्मठ कार्यकर्ता एवं बहुश्रुत चन्द्रकान्तभाई को है। मैं उनका कृतज्ञ हूँ।
यदि टीका में कोई शास्त्र विरुद्ध बात आ गई हो तो मेरे अल्पज्ञान के कारण आई जानकर क्षमा कर दें एवं कोई विशिष्ट बात ध्वनित हो तो मेरे गुरु का प्रसाद समझें। बस मैं तो 'पदे पदे स्खलनं' को स्वीकार करता हूँ।
डॉ. सोहनलाल पटनी एम्. ए. (संस्कृत-हिन्दी) बी. एड्. पी एच. डी.
स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, राजकीय महाविद्यालय, सिरोही (राज.)
अक्षय तृतीया, सन् १९८१
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