________________
यहां न शत्रु का उल्लेख है न मारने की या नाश करने की बात है कदाचित यह प्रश्न हो कि किन आगम सूत्रों में इसका किस तरह से उल्लेख है :उत्तर = भगवती सूत्र के मंगलाचरण में कल्पसूत्र के शक्र स्तंव में एवम् ज्ञाता धर्म कथांग सूत्र, आचारांग सूत्र, ठाणांग सूत्र आदि कई सूत्रों में कई जगह पर "अरहंताणं" ही है एवम् आगम सूत्रों के लिपीबद्ध होने के पहले याने करीबन दो हजार वर्ष पहले के राजा खाखेल के शिलालेख में मथुरा के कंकाली टीले से निकले शिलालेख में भी "अरहंताणं" है । प्राचीन ग्रन्थों में प्रायः अरहंताणं शब्द का ही उल्लेख है।
किसी प्रभावक विशिष्ट पदवीधारी व्यक्ति द्वारा अनजाने में गलती हो गई है अतः इसी से उन्हीं का अनुकरण व्यापक हो गया है और रूढ बन गया है जो जैन के मौलिक सिद्धांत से आगम सूत्रों से सर्वथा विपरित है।
ज्ञानाचार के अंतर्गत वंजन अत्थ तदुभये का उल्लंघन भी है।
आज से लगभग चालीस वर्ष पूर्व आचार्य श्री लब्धि सूरीस्वरजी द्वारा रचित स्तवन "कत्तल कर्मो नी" करी करी ने का विरोध हुआ था क्योंकि यह शब्द साधारण भाषा का था । लेकिन आचार्य श्री द्वारा "नमो अरिहंताणं" का उदाहरण देने से विरोध करने वालों को शांत होना पड़ा था। गहराई में जाने का प्रयत्न नहीं किया गया । अतः “अरहंताणं" शब्द का उपयोग ही आगमिक है वास्तविक है।
6) क्या यह सत्य है ? Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org