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________________ शब्दार्थ भमर-(हे) भ्रमर । म-मा । रुणझुणि-रुणझुणु-शन्दं कुरु । रण्णडइ अरण्ये । सा-ताम् । दिसि-दिशम् | जोइ-दृष्ट्वा । म-मा । रोइरुदिहि । सा-सा । मालइ-मालती । देसंतरिअ-देशान्तरिता । जसु यस्याः । तुहुँ-त्वम् । मरहि-म्रियसे । विओइ-वियोगे ॥ छाया (हे ) भ्रमर, अरण्ये रुणझुणु-शब्दम् मा कुरु । ताम् दिशम् दृष्ट्वा (च) मा रुदिहि । यस्याः वियोगे त्वम् म्रियसे, सा मालती ( तु) देशान्तरिता ॥ अनुवाद हे भ्रमर, अरण्य में मत गुनगुना; (और) उस ओर देखकर मत रो। जिसके वियोग में तु मर रहा है वह मालती (तो) दूसरे देश में (चली गयी) है। 369. जस्-शसोस्तुम्हे तुम्हइँ ॥ 'जस्' और 'शस' लगने पर 'तुम्हे', 'तुम्हइँ'। वृत्ति अपभ्रंशे युष्मदो जसि शसि च प्रत्येकं 'तुम्हे' 'तुम्हइँ' इत्यादेशौ भवतः । अपभ्रंश में 'युष्मद' के 'जस' (= प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) और 'शस' (= द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) लगने पर प्रत्येक में 'तुम्हें' (और ) 'तुम्हई' ऐसा आदेश होता है । उदा० (१) तुम्हे ( या ) तुम्हइँ जाणह ।। छाया यूयम् जानीथ ॥ अनुवाद तुम जानते हो । उदा० (२) तुम्हे (या) तुम्हइँ पेच्छइ ।। छाया युष्मान् प्रेक्षते । अनुवाद तुम्हें देखता है । वृत्ति वचनभेदो यथासङ्घय-निवृत्त्यर्थः । अनुवाद (सूत्र में आदेश का) वचन भिन्न है वह (देश) क्रमशः है (एसी समझ) दूर करने के लिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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