SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३ अनुवाद (प्रश्नः) 'बताओ, सत्पुरुष किन कारणों (-किस प्रकार) (के पौधे) से मिलते-जुलते हैं ?' . (उत्तरः) (दे) जैसे जैसे महत्व प्राप्त करते हैं, वैसे वैसे सिर से झुकते हैं । वृत्ति पक्षे ॥ इसके प्रति पक्ष में : उदा० (५) जइ ससणेही, तो मुइभ अह जीवइ, निण्णेह । बिहि वि पयारे हि धग गइअ किं गज्जहि, खल मेह ? ॥ शब्दार्थ जइ-यदि । ससणेही-सस्नेहा । तो-ततः । मुइअ-मृता । अह-अथ । जीवइ-जीवति । निण्णेह-निःस्नेहा । विहि वि-द्वाभ्याम् अपि । पयारे हि-प्रकाराभ्याम् । धण (दे.)-प्रिया । गइअ-गता । किं-किम् । गज्जहि-गर्जसि । खल मेह-खल मेव ।। छाया यदि सस्नेहा, ततः मृता । अथ जीवति, तदा निःस्नेहा । द्वाभ्याम अपि प्रकाराम्याम् (मम) प्रिया गता । (ततः) खल मेघ, किं (वृथा) गर्नसि ? ॥ अनुवाद यदि (मेरे प्रति) सस्नेह (रही होगी) तो (इस ससय तो) मर गयी (होगी); और यदि (वह) जिंदा हेगी, (तो मेरे प्रति) निःस्नेह (होगी); (इस प्रकार) दोनों दृष्टि से प्रियतमा गयी (ही है तो) हे दुष्ट मेघ, (अब व्यर्थ) क्यों गरजता है ? 368. वृत्ति अावाद युष्मदः सौ तुहुँ । 'युष्मद्' का 'सि' लगने पर, 'तुहुँ' । अपभ्रशे युष्मदः सौ परे 'तुहुँ' इत्या देशो भवति । अपभ्रंश में 'युष्मद्' का, 'सि' ( = प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) लगने पर, 'तुहुँ' ऐसा आदेश होता है । भमर, म रुणझुणि रगडइ सा दिसि जोइ म रोइ । सा मालइ देसंतरिम जसु तुहुँ मरहि विओइ ।। उदा० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy