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________________ जं वाहिउ तं सारु । अह डज्झइ तो छारु ॥ शब्दार्थ उदा० (३) आयो दड्ढ - कलेवरहों जइ उहब्भइ तो कुड्इ आयहाँ - अस्य । दडूढ - कलेवर हों - दग्ध-कलेवरस्य । जं यद् । वाहिउ - वाहितम् ( = लब्धम् ) । तं तत् । सारु - सारम् । जइ यदि । उटूट्ठब्भइउत्तम्नाति । तो- ततः । कुहइ - कुध्यति । अह-अथ । डज्झइ - दह्यते । तो - ततः । छारू - क्षारः । छाया अनुवाद 366 छाया अनुवाद ३१ अस्य दग्ध-कलेवरस्य यद् लब्धम् तत् सारम् । ( यतः ) यदि (तद्) उत्तम्नाति, ततः कुध्यति, अथ दह्यते, ततः क्षारः || 'सर्व' का विकल्प में 'साह' । वृत्ति अपभ्रंशे 'सर्व' शब्द का 'साह' ऐसा आदेश विकल्प में होता है । उदा० (१) साहु वि लोड तडफडइ वड्डत्तणहो तणेण । वड्डप्पणु पर पाविभइ हत्थें मोकलडेन || शब्दार्थ छाया अनुवाद इस मूए कलेवर का जो (कुछ) लाभ ( क्योंकि प्राण चले जाने के बाद तो ) सड़ जायेगा, और (उसे) जला डाले तो राख ( हो जायेगा ) | सर्वस्य साहो वा ॥ लिया जा सके, वही उत्तम । यदि ( उसे ) रहने दिया जाये तो 1: 1 fa-37fq 1 साहु- सर्व : वडत्तणहाँ (दे.)-महत्त्वस्य । पर-परम् । पाविअइ- प्राप्यते सर्वः अपि लोकः महत्त्वस्य महत्त्वम् मुक्तेन हस्तेन प्राप्यते । लोड-लोकः । तडफडइ ६ . ) - प्रस्पन्दते । तणेन - सम्बन्धिना । वड्डप्पणु-महत्त्वम् । हत्यें - हस्तेन । मोकलडेण - मुक्तेन । सम्बन्धिना ( कारणेन ) प्रस्पन्दते । परम् । Jain Education International सब लोग बड़प्पन (पाने) के लिए हाथ-पैर मारते हैं / तड़पते हैं - परन्तु बड़प्पन (तो) खुले हाथों द्वारा ही पाया जा सकता है । वृत्ति पक्षे ॥ इसके प्रतिपक्ष में ('सर्व' का 'सव्व' होता है । उसी प्रकार ऊपर का ही ) उदा० (२) सव्वु वि (यों पढे ) । सर्वः अपि ॥ सभी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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