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________________ ३० शब्दार्थ आ 365 इदम आयः । 'इदम्' का 'आय-'। वृत्ति अपभ्रंशे ‘इदम्'-शब्दस्य स्यादौ 'आय-' इत्यादेशो भवति ॥ अपभ्रंश में इदम् शब्द का 'सि'( = प्रथमा एकवचन का) आदि (कारक-प्रत्यय) लगने पर 'आय-' एसा आदेश होता है । उदा० (१) आयइँ लोअहो लोअणइँ जाई-सरइँ, न भंति । अ-प्पिएँ दिइ मउलिअहि पिएँ दिइ विहसंति ॥ आयइँ-इमानि । लोअहो -लोकस्य । लोअण-लोचनानि । जाई-सरईजाति-स्मराणि । न-न । भंति-भ्रान्तिः । अ-प्पिऍ-अप्रिये । दिइदृष्टके, दृष्टे । मउलिअहि-मुकुलन्ति । पिएँ-प्रिये । दिइ-दृष्टके, दृष्टे । विहसंति-विकसन्ति ॥ "छाया लोकस्य इमानि लोचनानि जाति-स्मराणि, न भ्रान्तिः । (यतः तानि) अप्रिये दृष्टे मुकुलन्ति, प्रिये दृष्टे (तु) विकसन्ति ॥ अनुवाद लोगों के इन लोचनों को पूर्वजन्म की स्मृति होती है (इसमें) संदेह नहीं । (क्योंकि वे) अप्रिय जन को देखने पर मूंद जाते हैं, (जबकि) प्रिय को देखने पर विकसित होते हैं (= खिल उठते हैं)। उदा० (२) सोसउ म सोसउ चिअ, उअही वडवानलस्स किं तेण । जं जलइ जले जलणो, आएण वि किं न पज्जतं ॥ शब्दार्थ सोसउ-शुष्यतु । म मा । सोसउ-शुष्यतु । चिय-एव । उअहीउदधिः। वडवानलस्स-वडवानलस्य । किं-किम् । तेण-तेन । ज-यद । जल इ-ज्वलति । जणे-जले । जलणो-ज्वलनः । आएण-अनेन । विअपि । किं-किं । न-न । पज्जत्तं-पर्याप्तम् ॥ उदधिः शुष्यतु, मा (वा) शुष्यतु एव । वडवानलस्स तेन किं ? यद जले ज्वलनः ज्वलति, अनेन अपि किम् न पर्याप्तम् ॥ अनुवाद समुद्र सोख लिए जाओ या न भी जाओ-इसमें बड़वानल का क्या जाता है ? क्या जल में अग्नि जलता हैं इससे ( = इतना) भी पर्याप्त नहीं है ? छाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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