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यत्तदः स्यमोधं ॥ 'सि' और 'अम् ' लगने पर 'यद्' और 'तद्' के 'ध्रु' और 'त्र' ।। वृत्ति अपभ्रंशे यत्तदोः स्थाने स्यमोः परयोर्यथालयं 'ध्रु', 'त्र' इति आदेशौ
वा भवतः ॥ अनुवाद अपभ्रंश में 'यद' और 'तद' के स्थान पर, 'सि' (= प्रथमा एकवचन
के '०स' प्रत्यय) और 'अम्' (= द्वितीया एकवचन के प्रत्यय) लगने
पर क्रमशः 'ध्रु' और 'त्र' ऐसे आदेश विकल्प में होते हैं । उदा० (१) अंगणि चिट्ठदि नाहु धुत्र रणि करदि न भंत्रि ॥ शब्दार्थ प्रंगणि-ग्राङ्गणे । चिट्ठदि-तिष्ठति । नाहु-नाथः । ध्रु-यद् । त्रं-तद् ।
रणि-रणे । करदि-करोति । न-न । भ्रंत्रि-भ्रान्तिम् , भ्रमणम् ॥ छाया यद् नाथः प्राङ्गणे तिष्ठति, तद् रणे भ्रमणम् न करोति । अनुवाद [क्योंकि] (मेरा) पति प्रांगण में खड़ा है, इसलिये समझना कि वह रणः
(भूमि) में भ्रमण नहीं करता है । वृत्ति पक्षे ॥
अन्य पक्ष में (इसके प्रतिपक्ष में 1) उदा० (२) तं वोल्लिअइ जु निव्वहइ ।। शब्दार्थ तं-तद् । वोल्लिअइ-ब्रूयते । जु-यद् । निव्वहइ-निर्वहति ॥ छाया तद् ब्रूयते, यद् निवहति ।। अनुवाद वही बोलें, जो घटित हो । निमें ।
वृत्ति
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इदम इमुः क्लीबे ॥ 'इदम्' का नपुंसकलिंग में 'इमु' । अपभ्रंशे नपुंसकलिङ्गे वर्तम्मनस्येटमः स्थमोः परयोः 'इमु' इत्यादेशो भवति ॥ अपभ्रंश में नपुंसकलिंग में स्थित इदम् का 'सि' (= प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) और 'अम् ' ( = द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) लगने पर
'इमु' ऐसा आदेश होता है। उदा० (१) इमु कुल तुह तणउँ ।। (२) इमु कुलु देखु ।
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